कन्हैयालाल – रोज़ मर रहा है
कन्हैयालाल – रोज़ मर रहा है

कन्हैयालाल – रोज़ मर रहा है
✍️ एक रिपोर्ट जो न्याय की देरी से उठते सवालों को उजागर करती है
28 जून 2022 को राजस्थान के उदयपुर में घटित वह घटना आज भी देश के ज़हन में एक टीस की तरह दर्ज है। कन्हैयालाल साहू—एक साधारण दर्जी—को दिनदहाड़े दुकान में घुसकर जिस निर्ममता से मार डाला गया, वह सिर्फ़ एक हत्या नहीं थी; वह देश की सामाजिक सहिष्णुता, न्यायिक तत्परता और मानवता की परीक्षा थी। दर्ज़ी कन्हैयालाल की दिनदहाड़े गला रेतकर हत्या कर दी गई – वह भी केवल एक सोशल पोस्ट की वजह से। लेकिन क्या यह हत्या उस दिन थम गई थी? नहीं। वह तो आज भी हो रही है – धीरे-धीरे, कानून के जंजाल में, न्याय की देरी में, और समाज की चुप्पी में।
आज तीन साल बाद, जब उनके परिवार की आँखें अब भी न्याय की ओर टिकी हैं, सवाल उठता है—क्या वाकई कन्हैयालाल सिर्फ़ एक दिन मरा था? या वह अब भी रोज़ मारा जा रहा है—हर उस दिन जब अदालत में सुनवाई टलती है, जब आरोपी मुस्कुरा कर मीडिया को देखते हैं, और जब सिस्टम चुपचाप कागज़ों में उलझा रहता है?
"जिस दिन इंसानियत मारी जाती है, उस दिन इंसान नहीं, पूरा समाज मरता है।"
⚖️ न्याय की गूंगी दीवारें
तीन साल में अभी तक ना कोई दोषसिद्धि हुई है, ना कोई अंतिम निर्णय आया है। केस की सुनवाई जयपुर स्थित NIA विशेष न्यायालय में चल रही है, लेकिन लंबे समय से न्यायाधीश की नियुक्ति में देरी, प्रक्रिया में अड़चनें और प्रशासनिक शिथिलता ने इस केस को "लंबित न्याय" की श्रेणी में डाल दिया है।
परिवार बार-बार गुहार लगा रहा है—"हमें इंसाफ़ चाहिए", पर जवाब में सिर्फ़ तारीख़ें मिलती हैं। न्याय जब देरी से आता है, वह खुद अन्याय बन जाता है। और यही अन्याय, हर दिन कन्हैयालाल को दोबारा मारता है।
ताज़ा स्टैंडिंग — गोल्ड डेटा
-
न्यायिक प्रक्रिया लंबित: आज 28 जून, 2025 को इस हत्याकांड को तीन साल पूरे हो गए, लेकिन न तो कोई दोषसिद्धि हुई है और न ही फ़ैसला दिया गया है। परिवार को न्याय के लंबित होने से बहुत निराशा है। मामले की सुनवाई NIA विशेष न्यायालय, जयपुर में चल रही है ।
-
विशेष अदालत में विलंब: पूर्व CM अशोक गहलोत का आरोप है कि NIA के पास जल्दी से उठे इस मामले में अब तक तेज़ कार्रवाई नहीं हुई। पिछले छह महीनों में कोई सुनवाई तय नहीं हुई क्योंकि अदालत में न्यायाधीश का कार्यभार बदल गया है ।
-
आज़ादी पर फिर सवाल: प्रमुख आरोपी मोहम्मद जावेद की रिहाई पर भी विवाद जारी है। राजस्व उच्च न्यायालय ने उन्हें जमानत दी थी, लेकिन अभियुक्त के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में यश तेली (कन्हैयालाल के पुत्र) की याचिका पर नोटिस जारी हुआ था ।
-
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप: गहलोत ने भाजपा और केंद्र सरकार पर यह केस राजनीतिक शिकार बनाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने मामले का उपयोग चुनावी मुद्दे के रूप में किया, लेकिन न्याय सुनिश्चित नहीं किया
एक दर्जी की मौत, एक समाज का लहूलुहान विवेक
कन्हैयालाल न कोई राजनेता थे, न कोई मशहूर शख्सियत—वह एक दर्जी थे, जो अपने काम से अपने बच्चों का पेट पाल रहे थे। उनका दोष? सिर्फ़ इतना कि उन्होंने सोशल मीडिया पर कुछ ऐसा साझा कर दिया जो कुछ कट्टरपंथियों को नागवार गुज़रा। लेकिन क्या किसी अभिव्यक्ति की कीमत जान से चुकाई जानी चाहिए?
इस सवाल का जवाब यदि आज़ाद भारत नहीं दे पा रहा, तो यह हमारे संविधान की आत्मा पर सीधा आघात है।
न्याय की प्रतीक्षा में एक टूटता परिवार
कन्हैयालाल के बेटे यश आज भी अदालत की हर तारीख पर उम्मीद लेकर पहुंचते हैं – शायद आज कोई फैसला हो, शायद आज कोई दोषी सज़ा पाए। लेकिन तीन साल बीत गए, और मामला अब भी "प्रक्रिया में" है। कभी जज नहीं, कभी तारीख नहीं, कभी गवाह नहीं – न्याय की गाड़ी जैसे जानबूझकर धीमी कर दी गई हो।
⚖️ सिस्टम की सुस्ती या साज़िश?
NIA ने पूरे देश को भरोसा दिलाया था कि ये केस "तेज़ ट्रैक" पर चलेगा। लेकिन न तो ट्रैक दिखा, न तेज़ी। आज तक कोई दोष सिद्ध नहीं हुआ। एक आरोपी को तो जमानत भी मिल गई, और उस पर सुप्रीम कोर्ट में अब सुनवाई का इंतज़ार है।
क्या यह वही देश है, जहां न्याय की देवी की आंखें बंद होती हैं? या अब उसकी आंखें खुली हैं लेकिन सत्ता और वोटबैंक के इशारे पर झपकने लगी हैं?
कट्टरता का जवाब सिस्टम की चुप्पी?
जिस तरीके से यह हत्या एक "आतंकी कृत्य" थी, उसी स्तर पर इस केस की सुनवाई होनी चाहिए थी। पर जमीनी सच्चाई यह है कि तीन साल बाद भी पूरा मामला “प्रक्रिया में है”। NIA जैसी एजेंसी के रहते भी यदि यह गति हो, तो आम आदमी की सुरक्षा और इंसाफ़ की उम्मीदें कैसे टिकें?
मौन सरकारें और ठहरे हुए आँसू
राजनीतिक दलों ने इस घटना का इस्तेमाल चुनावी मंचों पर तो खूब किया, लेकिन जब बात न्याय की आई, तो सभी चुप नज़र आए। आरोप और प्रत्यारोप का खेल चलता रहा, पर कन्हैयालाल के परिजनों के आँसू आज भी वहीं ठहरे हुए हैं, जहाँ तीन साल पहले थे।
एक दर्ज़ी का क़त्ल – क्या इतना सस्ता था उसका जीवन?
कन्हैयालाल आम आदमी थे। कोई नेता नहीं, कोई अभिनेता नहीं। बस एक दर्ज़ी, जो रोज़ मेहनत करता था, बच्चों को पालता था, और उम्मीद करता था कि देश उसका भी है।
लेकिन उसकी हत्या के बाद कुछ दिन शोर हुआ – फिर चुप्पी।
फिर चुनाव आए, राजनीतिक बयानबाज़ी हुई, फिर चुप्पी।
अब केस अदालत में है – और समाज की संवेदना भी "फ़ाइल" बन गई है।
हर दिन मरता है कन्हैयालाल
-
जब अदालत में सुनवाई टलती है, वो मरता है।
-
जब आरोपी को जमानत मिलती है, वो मरता है।
-
जब कोई उसे "विवादित पोस्ट" कहकर दोषी बताता है, वो मरता है।
-
और जब हम सब खामोश रहते हैं, वो हर दिन मरता है।
सवाल हमसे भी हैं
-
क्या हम सिर्फ़ बड़ी हस्तियों के लिए ही सड़कों पर उतरते हैं?
-
क्या आम नागरिक का खून अब सस्ता हो गया है?
-
और क्या हम इतने असंवेदनशील हो गए हैं कि अगले कन्हैयालाल की बारी का इंतज़ार कर रहे हैं?
यह सिर्फ़ एक हत्या नहीं थी। यह चेतावनी थी – कि अगर हम नहीं जागे, तो कन्हैयालाल कल हम में से कोई भी हो सकता है।
अब भी वक्त है...
कन्हैयालाल को बस एक बार नहीं, बार-बार मारने से रोकना है।
न्याय सिर्फ़ सज़ा नहीं, समय पर सज़ा भी होना चाहिए।
और सबसे ज़रूरी – समाज को आवाज़ उठानी होगी, नहीं तो चुप्पी अगला हथियार बन जाएगी।
हत्या अब भी जारी है
कन्हैयालाल की हत्या सिर्फ़ एक दिन नहीं हुई थी—वह रोज़ मर रहे हैं। जब भी कोई जिम्मेदार संस्था चुप बैठी रहती है, जब भी कोर्ट की तारीख़ आगे खिसकती है, जब भी कोई आरोपी मीडिया में अपनी बात खुलकर कहता है, तब एक बार फिर उस दर्जी की हत्या होती है—धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से।
यह लेख एक चेतावनी है—हम सबके लिए। क्योंकि अगर इस देश में एक दर्जी को न्याय नहीं मिला, तो कल कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा।
✒️ लेखक की कलम से:
"न्याय वह नहीं जो सिर्फ़ मिलता है, न्याय वह है जो समय पर मिलता है। अन्यथा, हर देरी एक नई हत्या है। कन्हैयालाल इसका जीता-जागता उदाहरण हैं।"