"राज और उद्धव की जुगलबंदी: बीजेपी की मुश्किलें बढ़ेंगी या केवल शोर?"
"राज और उद्धव की जुगलबंदी: बीजेपी की मुश्किलें बढ़ेंगी या केवल शोर?"

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के एक साथ आने के मायने: क्या महाराष्ट्र की राजनीति करवट लेने जा रही है?
✍️ लेखक: Indian News Adda विश्लेषण डेस्क
प्रकाशन तिथि: 7 जुलाई 2025
प्रस्तावना
महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़ तब आया जब मनसे प्रमुख राज ठाकरे और शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता उद्धव ठाकरे के बीच नजदीकियां बढ़ती दिखाई दीं। वर्षों से एक-दूसरे के कट्टर राजनीतिक विरोधी रहे ये दोनों ठाकरे अब एक मंच पर आने की संभावना जता रहे हैं। यह न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से अहम है, बल्कि महाराष्ट्र की आगामी सियासी तस्वीर को बदलने वाला कदम भी हो सकता है।
राज और उद्धव: दो रास्तों के ठाकरे
राज ठाकरे ने 2006 में शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बनाई थी। उन्होंने शिवसेना की "मराठी अस्मिता" को अपनी राजनीति की धुरी बनाया, लेकिन समय के साथ उनका जनाधार सिकुड़ता गया। दूसरी ओर उद्धव ठाकरे ने शिवसेना को हिंदुत्व से इतर एक ‘सेक्युलर’ फ्रेम में लाकर महाविकास आघाडी (MVA) का हिस्सा बनाया, जिससे पार्टी की पारंपरिक पहचान को नुकसान पहुंचा।
अब अगर ये दोनों एक साथ आते हैं, तो यह न केवल ठाकरे परिवार की भावनात्मक एकता का प्रतीक होगा, बल्कि एक राजनीतिक समीकरण भी जो पूरे महाराष्ट्र में असर डाल सकता है।
क्या यह गठबंधन सफल होगा?
राज और उद्धव के संभावित गठबंधन की सफलता कुछ प्रमुख बातों पर निर्भर करेगी:
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कार्यकर्ताओं का समर्थन:
क्या शिवसैनिक और मनसे कार्यकर्ता पुराने कटु अनुभवों को भुलाकर एक साथ काम करने को तैयार होंगे? -
आइडियोलॉजिकल तालमेल:
उद्धव अब तक कांग्रेस-एनसीपी के साथ एक उदारवादी छवि बना चुके हैं, वहीं राज अभी भी आक्रामक हिंदुत्व और मराठी मुद्दों पर डटे हुए हैं। दोनों की नीतियों में सामंजस्य बैठाना एक बड़ी चुनौती होगी। -
नेतृत्व का प्रश्न:
क्या राज ठाकरे उद्धव के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे, या कोई नया साझा चेहरा उभरेगा? यह सवाल इस गठबंधन की मजबूती को तय करेगा।
क्या बीजेपी को होगा नुकसान?
भाजपा ने 2019 के बाद शिवसेना में विभाजन कराकर शिंदे गुट को सत्ता दिलाई, और लगातार राज ठाकरे को ‘बी टीम’ के रूप में उपयोग किया। लेकिन यदि राज और उद्धव साथ आ जाते हैं, तो निम्नलिखित नुकसान संभव हैं:
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मराठी वोट बैंक में सेंध: भाजपा की सबसे बड़ी चिंता यह होगी कि अब मुंबई, ठाणे, पुणे जैसे शहरी मराठी इलाकों में एकजुट ठाकरे फैक्टर उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है।
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शिंदे गुट की प्रासंगिकता खत्म: अगर ठाकरे बंधु साथ आते हैं, तो शिंदे गुट के अस्तित्व और जनाधार पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लग सकता है।
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राजनीतिक नैरेटिव का पलटना: भाजपा ने उद्धव को ‘धोखेबाज’ बताया और राज को ‘हिंदुत्व का सच्चा चेहरा’। अब यदि दोनों साथ आते हैं, तो भाजपा का नैरेटिव कमजोर हो सकता है।
महाराष्ट्र में नए समीकरण: क्या यह नई राजनीति की शुरुआत है?
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पक्ष-विपक्ष की धुंधली होती सीमाएं:
महाविकास आघाडी में कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) पहले से ही साथ हैं। अगर राज ठाकरे इस खेमे में आते हैं, तो यह हिंदुत्व + सेक्युलर गठबंधन का अनूठा प्रयोग होगा। -
जनता की भावनाएं:
ठाकरे परिवार की एकता को भावनात्मक समर्थन मिल सकता है, विशेषकर उन मतदाताओं से जो पारंपरिक शिवसैनिक रहे हैं। -
भविष्य के चुनावी समीकरण:
लोकसभा 2024 में भले बीजेपी को बढ़त मिली हो, लेकिन विधानसभा 2029 की तैयारी में यह गठबंधन भाजपा के लिए गंभीर चुनौती पेश कर सकता है।
क्या यह महज़ मिलन है या राजनीति का नया अध्याय?
राज और उद्धव ठाकरे का एक साथ आना केवल दो नेताओं का पुनर्मिलन नहीं है, यह एक राजनीतिक प्रयोग भी है। अगर यह गठबंधन जमीन पर उतरता है और कार्यकर्ता इसे स्वीकार करते हैं, तो यह महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई शुरुआत का संकेत होगा। हालांकि सफलता की गारंटी नहीं है, लेकिन इतना तो तय है कि यह गठबंधन राजनीतिक बहसों और समीकरणों को एक नई दिशा देने वाला साबित हो सकता है।
आपकी राय क्या है? क्या यह मिलन महाराष्ट्र के लिए हितकारी होगा या फिर एक और अस्थायी समीकरण? नीचे कमेंट में ज़रूर बताएं।
ॲड तुषार पाटिल
(प्रधान संपादक)
(उपरोक्त सम्पादकीय लेख- लेखक की निजी राय है, जरुरी नहीं की सभी इससे सहमत हो.)