बढ़ती उम्र में इन्हे त्याग दीजिए..... लेख, धर्मेंद्र श्रीवास्तव धार,

बढ़ती उम्र में इन्हे त्याग दीजिए..... लेख, धर्मेंद्र श्रीवास्तव धार,

।।बढ़ती उम्र में इन्हें त्याग दीजिए।।   

एक दो बार समझाने से यदि कोई नहीं समझ रहा है तो सामने वाले को समझाना,

       त्याग दीजिए.....

बच्चे बड़े होने पर वो स्वयं के निर्णय लेने लगे तो उनके पीछे लगना,

     त्याग दीजिए....... 

गिने चुने लोगों से अपने विचार मिलते हैं, 

यदि एक दो से नहीं मिलते तो उन्हें,

      त्याग दीजिए..... 

एक उम्र के बाद कोई आपको न पूछे या कोई पीठ पीछे आपके बारे में गलत कह रहा है तो दिल पर लेना,

       त्याग दीजिए.......  

अपने हाथ कुछ नहीं,

 ये अनुभव आने पर भविष्य की चिंता करना,

      त्याग दीजिए..... 

यदि इच्छा और क्षमता में बहुत फर्क पड़ रहा है,

 तो खुद से अपेक्षा करना,

    त्याग दीजिए.....

हर किसी का,

(पद, कद, मद)

 सब अलग है,

 इसलिए तुलना करना,

     त्याग दीजिए.....

बढ़ती उम्र में जीवन का आनंद लीजिए, 

रोज जमा खर्च की चिंता करना,

        त्याग दीजिए.....  

आशा होंगी तो विचार भी बहुत होंगे, 

यदि शांति से रहना है,

 तो आशा करना,

        त्याग दीजिए.....

लेखन अच्छा लगे तो ठीक,

 न लगे तो फारवर्ड करने का विचार,                             

         त्याग दीजिये....

।।ॐ।।

।।जय हरि हर।।