“गणित की गिरती नींव: जब बुनियादी समझ भी बोझ बन जाए”
“गणित की गिरती नींव: जब बुनियादी समझ भी बोझ बन जाए”

“गणित की गिरती नींव: जब बुनियादी समझ भी बोझ बन जाए”
लेख:
देश की सबसे बड़ी चिंता न बेरोजगारी है, न ही महंगाई — असल चिंता है उस नींव की, जो भविष्य की इमारत को संभालने वाली थी। हाल ही में शिक्षा मंत्रालय के सर्वेक्षण ने एक गहरी, और कहीं ज़्यादा चिंताजनक सच्चाई को उजागर किया है। छठी कक्षा के 47% छात्र 10 तक के पहाड़े नहीं जानते, और तीसरी कक्षा के 42% बच्चे दो अंकों की संख्याएं जोड़ना और घटाना नहीं सीख पाए हैं।
यह आंकड़े मात्र संख्या नहीं हैं — ये हमारे शिक्षण तंत्र की जर्जर होती जड़ों का खुला सबूत हैं।
जब संख्या डराने लगे…
बचपन का गणित डर नहीं, खेल होना चाहिए। मगर जब तीसरी कक्षा का बच्चा दो अंकों की संख्याएं जोड़ने में भी असहाय हो, तो सवाल उठते हैं — कहाँ चूक हो रही है? क्या शिक्षक की बात कक्षा में गूंजती नहीं, या फिर बच्चा घर में पढ़ने के लिए प्रेरित नहीं?
कहीं न कहीं, शिक्षा अब ‘अंक पाने की दौड़’ में तब्दील हो गई है, समझ की बजाय रटंत ज्ञान का बोझ बन गई है। कक्षा में नंबरों से भरी स्लेट है, मगर बच्चों के दिमाग में खाली जगह है, जिसे सही दिशा नहीं मिल रही।
समस्या अकेली नहीं है, जटिल है
इस गिरावट की जड़ें गहरी हैं —
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शिक्षकों की संख्या और गुणवत्ता,
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पाठ्यक्रम की जटिलता और व्यवहारिकता का अभाव,
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ऑनलाइन पढ़ाई का असर,
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और सबसे ज़रूरी, बच्चों में सीखने की रुचि जगाने का अभाव।
जब गणित के सवालों का उत्तर बच्चे गूगल से पूछने लगें, और शिक्षक केवल पाठ्यक्रम ‘निपटाने’ में लगे रहें, तो ज्ञान का पौधा सूखता है।
हल क्या है?
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बुनियादी शिक्षा पर दोबारा ज़ोर देना होगा।
पहली से पांचवीं तक केवल ‘पास’ करने की नहीं, ‘समझ’ विकसित करने की नीति अपनानी होगी। -
शिक्षकों को प्रशिक्षण देना होगा — केवल पढ़ाने का नहीं, समझाने का।
रटाने वाले शिक्षक नहीं, प्रेरित करने वाले गुरू चाहिए। -
परिवारों को भी शिक्षा का भागीदार बनाना होगा।
बच्चे स्कूल से जितना सीखते हैं, घर से भी उतना ही ग्रहण करते हैं। -
गणित और विज्ञान को भय से नहीं, अनुभव से जोड़ना होगा।
पहाड़ों को रटवाने की बजाय, खेल-खेल में सीखने की संस्कृति लानी होगी।
अगर तीसरी कक्षा का बच्चा दो अंकों की गणना नहीं कर सकता, तो यह सिर्फ उसकी कमजोरी नहीं, पूरे समाज की पराजय है। यह समय है शिक्षा की खोई जमीन वापस पाने का, वरना वो दिन दूर नहीं जब हमारी पीढ़ी ‘बेसिक’ शब्द का मतलब भी भूल जाएगी।
✍️— भारतीय न्यूज़ अड्डा संपादकीय टीम
साक्षरता नहीं, समझदारी चाहिए। शिक्षा को फिर से अर्थपूर्ण बनाना होगा।