बदली परिस्थितियों में समाज का विकास और महिलाएं

बदली परिस्थितियों में समाज का विकास और महिलाएं

विकसित भारत संकल्प यात्रा को संबोधित करते हुए देश के प्रधान मंत्री  ने  कहा.. मेरे लिए केवल चार जाती है.. किसान, युवा, गरीब जन औऱ महिलाएं ..इनका सम्पूर्ण विकास ही मेरा लक्ष्य है ..उनने कहा कि देश की आधी आबादी  महिलाओ को पूर्णत: सशक्त और विकसित कर    के  ही देश को प्रखर व  गौरव पूर्ण बनाने का सपना  हम  दोगुना गति से पूरा कर सकते है, कुछ समय पहलें... 2015 में स्लोगन आया था बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ उस समय तक शायद यह जागरुकता  पर्याप्त थी कि  लिंग अनुपात दृष्टि से बेटियों  को बचाया जाये तथा इतना तो पढ़ा दिया जाए कि वे कम से कम हस्ताक्षर कर ले, कोई पत्र पढ़ ले,  परन्तु बदली परिस्थितियों में केवल साक्षर होना या किताबी ज्ञान  होना पर्याप्त नहीं है...
 

प्रतीत हो रहा है कि वे अपना भला बुरा समझ सके ,स्वयं के निर्णय लेने में अपने कर्तव्यों के साथ अधिकार भी समझने मे सक्षम हो सके .. गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा पर, प्रशिक्षण पर..
ज्ञान के साथ कौशल एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास  पर ध्यान केंद्रित किया जाना आवश्यक है.।नयी सोच के साथ यदि महिलाओ को  नवीन प्रावधानों के तहत निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल किए जाने  ,नेतृत्व करने  के अवसर दिए जाते है तो उसके लिए काबिलियत भी ज़रूरी है अन्यथा प्रावधानों के तहत यदि अधिकार प्राप्त भी होते है तो अशिक्षा अथवा कौशल के अभाव में दुरुपयोग की संभावनाये बनतीं है यथा पार्षद पति सरपंच पति  जैसी परिस्थितियां...ये ज्ञान एवम कौशल के अभाव में ही उपजती है .. इस स्थिति में शिक्षा के साथ  कौशल  विकास एवम आत्मविश्वास विकसित किया जाना एक आवश्यक कदम है... परिवार या संस्थान के लिए निर्णय लेने से पूर्व स्वयं के लिए निर्णय ले पाने की क्षमता, सुदृढ़ता से अपनी बात कह पाने का साहस, विचार पूर्वक संवाद   व्यक्तित्व के समग्र विकास से ही सम्भव हो पाएगा.. जिसके लिए आवश्यक है..updation..पढ़ते रहना ,स्वाध्यायी होना, नई तकनीकों को सीखना ...     कर्तव्यों के साथ वांछित अधिकार के प्रति  भी सचेतना रखना।

महिलाओ की कुल  संख्या का  कुछ प्रतिशत बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है.. सर्वे दिखा रहे  है. उनकी लगभग हर क्षेत्र मे भागी दारी और उत्तम प्रदर्शन..
परंतु अंतिम लक्ष्य सभी के विकास से ही पाया जा सकेगा.. महिलाओं के परिप्रेक्ष्य में आर्थिक सशक्तिकरण  की बात करे  तो यह
न केवल  स्वावलंबन का पर्याय है अपितु ये उनके आत्मविश्वास और आत्मसम्मान में भी अभिवृद्धि का कारक है।
जब महिलाये आर्थिक रूप से सशक्त होती हैं तो वे परिवार के कल्याण में भी निवेश करती हैं जिससे पारिवारिक शिक्षा, स्वास्थ्य और समग्र समृद्धि में सकारात्मक परिवर्तन आता है इसलिए  यह लाभ  व्यक्तिगत नहीं इसका  प्रभाव परिवार समाज और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है .आज लगभग हर क्षेत्र में महिलाये  कार्यरत है अपनी योग्यता, जीवटता, ईमानदारी,  निष्ठा ,कठिन परिश्रम  ,नैसर्गिक प्रबंधन क्षमता के गुण होने के कारण बहुत अच्छा प्रदर्शन भी कर रही हैं..कार्य क्षेत्र में उनके अनुभव आने वाली 
परेशानियों का भी अध्ययन प्रलेखन दस्तावेजीकरण भी आवश्यक प्रतीत होता है....
एक परियोजना प्रस्तुत हुई थी *गर्म चाय के पीछे की कथा असम के बागानों में कार्यरत महिला मज़दूरों की  कहानी. (एसे अनेक औद्योगिक प्रक्रम है जहां महिलाएँ काम क़र रही है  जहा कार्य कर परियोजनाएं प्रस्तुत की जाना चाहिए .यह भी देखने में आता है कि  नैसर्गिक रूप से सर्व गुण संपन्न multi tasking में दक्ष महिलाये सभी मोर्चों पर सभी  जिम्मेदारी   बख़ूबी(भली प्रकार) निभाते हुए स्वास्थ्य फ्रंट पर हारने लगती हैएसा न हो  इस हेतु ..उन्हें स्वास्थ्य  पर ध्यान देने के लिए  शिक्षित किया जाना  सजग बनाना आवश्यक है ..  अब तो हाई कोर्ट ने भी verdict दिया है कि घर की बाहर की  जिम्मेदारियों के निर्वहन  में  घर के  सभी सदस्यों द्वारा   सहयोग हो  ..परिवार और और समाज में एसा बोध हो यह प्रसार भी आवश्यक होता जा रहा है । प्रगति की बयार है ...समान अवसर  समर्थन समावेशन की सोच बन रही है परंतु  साथ ही  कार्यस्थल  में तथा समाज में भी महिलाओ की सुरक्षा सुनिश्चित  करना बड़ी चिन्ता क़ा विषय होता जा रहा है  इसके लिए समाज में जागरुकता के साथ  महिलाओ को आत्म सुरक्षा हेतु आत्मबल, आत्मविश्वास विकसित करने की मानसिक एवम शारीरिक प्रशिक्षण दिए जाने की  आवश्यकता सुनिश्चित की जाना समय की माँग बन उभरी है. ।  संचार साधनों का तेजी से हुआ प्रसार और सोशल मीडिया के अनेकानेक फायदों के साथ साथ..ज्ञान  प्रगति विकास की  खबर के आने के साथ   पाश्चात्य उप भोगवादी संस्कृति की  झलक भी  सब के सामने आ गई है 
इस बदली परिस्थियों में भी जड़ों से नई पीढ़ी जुड़ी रहे इसके प्रयास सचेतनता सजगता आवश्यक है.। पुस्तकों में ,आम साहित्य में ,फ़िल्मों में, सीरिअल में महिलाओ का प्रस्तुति करण कैसा है ,उनकी किन विशेषताओं पर केंद्रीकरण है इस पर नीतिगत बहस उसका विश्लेषण और रिपोर्ट प्रस्तुति करण  होना  मीमांसा होना औऱ तत्पश्चात उचित  कदम  उठाया जाना  आवश्यक है ..सजग-सक्रिय सचेतक रह कर  सामूहिक रूप से वृहद स्तर पर  नियंत्रण करना आज समय की मांग प्रतीत हो रही है ..पीढ़ियों से संस्कृति का संवर्धन और  संस्कार हस्तांतरण  महिलाओ द्वारा होता आया है यही कारण है भारत की संस्कृतिक विरासत की विश्व में पहचान कायम है। निष्कर्षत:  आज की स्थिति में समाज में स्वस्थ मानसिकता के साथ  महिलाओ को सहयोग देकर समावेशन और संसाधन..उपलब्ध करवा कर हीं महिलाओं के माध्यम से  समाज के विकास में अभूतपूर्व योगदान सुनिश्चित किया जा सकता है।

लेखिका:प्रेरणा मनाना 
वरिष्ठ शिक्षाविद एवम स्तंभकार