लोक नायक का लोक कल्याण मार्ग तक का सफ़र

लोक नायक का लोक कल्याण मार्ग तक का सफ़र

जन्मदिन विशेष
लोक नायक का लोक कल्याण मार्ग तक का सफ़र
”हिंदुत्व का मसीहा“ से  मोडरेट मोदीत्व का युग
शाश्वत सनातनी संस्कृति के पुनर्स्थापन का स्वर्णिम काल
दुष्यंत कुंटे, प्रधान संपादक
द्वेत-अद्वेत, धर्म-अधर्म, जन्म-जन्मांतर के समायोजन से सार्थक शाश्वत सनातन, देश भारत वर्ष। आपने हजारों वर्ष के सफर के दौरान छोटे से काल खंड में आई विसंगतियों और अशुद्धियों को स्वच्छ करने के लिए नियति से अगर किसी संगठन और संगठन किसी व्यक्ति को आगे करता है, तो इसमें कोई संशय नही है।
सनातनी संस्कृति की समद्धि पर नजर दौड़ाए तो युग परिवर्तन के लिए समय समय पर नियति ने किसी को चुना और उसने अपनी भूमिका निर्वाह कर मानव विकास के आदर्श प्रस्तुत कर अपने क्रतुत्व से अमिट छाप छोड़ी। ऐसा ही कुछ मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में प्रधान सेवक नरेंद्र दामोदर दास मोदी की ओर देखकर भी प्रतीत होता है। बाल स्वयं सेवक के रूप में राष्ट्रीयता, एकात्म मानवतावाद और सनातनी परंपराओं के संवर्धन के पाठ पढ़ पला बढ़ा यह स्वयं सेवक मानो अपने संगठन संघ के वैचारिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संघर्षों से व्यथित होने की बजाए स्व.अनुशासन से आत्मकेंद्रित हो मानो तमाम संघर्षों के समाधान के लिए तपा रहा हो।

अपनी स्थापना के पचहत्तर वर्षों तक संघ भी राष्ट्र सर्वाेपरि के संकल्प के साथ निरंतर चहुँमुखी संघर्षों से गुजरकर अपने एक ऐसे प्रचारक को तैयार कर रहा जो माँ भारती की अपनी मौलिक पहचान को विश्व परिदृश्य में पुनर्स्थापित कर सके। कहते है ना नियति भी अपने महान कार्याे के संपादन के लिए स्वतः अनुकूल वातावरण निर्मित कर अपने संकल्प को पूरा करने का निमित्त चुन ही लेती है। अपने युगों के गौरवशाली प्रवास में भारतवर्ष ने परिस्थितिवश अपनी सुनहरी छटा पर छाए कुछ काले बादलों को छांटने के लिए बड़ी ही सुव्यवस्थित ढंग से कार्ययोजना शुरू की।

इसकी शुरआत छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के साथ हिंदवी स्वराज्य की अलख जली और तमाम-उतार चढ़ाओ के बावजूद यह ज्वाला तलवार से होते हुए स्वामी विवेकानंद से लेकर संघ तक विचारों परिणित हो गई। करीब साढ़े तीन सौ साल की सतत प्रक्रिया से गुजरने के बाद  इक्कीसवीं शताब्दी मानो पूरी तैयारी से सभी मिथ को तोड़ते हुए  संघ के बाल स्वयं सेवक से परिपक्व तपस्वी प्रचारक नरेंद्र मोदीं के राज्याभिषेक की तैयारी में बैठी हो। संघ और भाजपा के इतिहास में पहली बार सीधे किसी पूर्णकालिक प्रचारक को लोकतांत्रिक परंपरा से हटकर वर्ष 2001 में मुख्यमंत्री बनाया गया हो।

गुजरात का मुख्यमंत्री बनने पर इस प्रचारक के लिए आंतरिक और बाहरी चुनोतियों का अंबार था। लेकिन नियति अगर अपना निमित्त चुन लेती है, तो पहले से राहे भी आसान कर ही देती है। वर्ष 2002 में गोधरा कांड के बाद तमाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया की आलोचना का शिकार लेकिन बहुसंख्यक वर्ग में ”हिंदुत्व का मसीहा“ बनकर उभरा यह ”युगंधार“ अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता से अग्रसर रहा और संघ अपने प्रचारक के पीछे मजबूत दीवार बनकर। हालांकि किसी भी दल की राजनीतिक तासीर सत्ता तक सीमित होतीं हैं और पराभाव के कारण अपरंपरागत प्रयोग ही निशाने पर होते है।

वर्ष 2004 में केंद्र में तत्कालीन वाजपेयी सरकार के पराभाव का ठीकरा मोदी पर फोड़ने की कोशिश हुई। लेकिन संघ नेता मदनदास देवी, सुरेश सोनी और भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के चलते मोदी का अश्वमेघ घोड़ा सत्ता की सीढ़ियों पर सरपट दौड़ता रहा। संघ भी बखूबी जानता था कि लोकतांत्रिक राजनीति में विशुद्ध राजनेता किसी भी दल का हो उसकी कार्यशैली में थोड़ी बहुत लोच होती ही है और वह युग परिवर्तन की निर्णय क्षमता में बाधक होती है।
खैर वर्ष 2004 से 2014 (सही मायने में 2011) तक भाजपा अपनी लायबिलीटीज के ऋणानुबंद से मुक्ति से गुजर रही थी। इस बीच मोदी गुजरात मुख्यमंत्री के रूप में अपने निर्णयों और विरोधियों की आलोचना से ओर निखरते जा रहे थे। तो वर्ष 2009 में डॉ मोहन भगत ने संघ प्रमुख बनते ही संघ परिवार के सफर सबसे बोल्ड बयान देते हुए अपना रुख स्पष्ट किया। उन्होंने तत्कालीन भाजपा की राजनीतिक सेहत देखते हुए कहा की भाजपा को कीमोथेरेपी की आवश्यकता है। भागवत के इस बयान से भगवा ब्रिगेड के राजनीतिक गलियारों में शीर्ष से लेकर अर्श तक सन्नाटा पसर गया। त्याग और तप से खड़े चौरासी वर्षीय संगठन संघ के छठवें प्रमुख के कंधों पर जिम्मेवारियों का भार और कर्तव्यबोध कार्यप्रणाली में भी परिलक्षित हुआ।

फलस्वरूप चौदह वर्षीय मुख्यमंत्रीत्व काल मे ग्राम पंचायत स्तर पर सत्ता संचालन का अनुभव लेकर भारत वर्ष का तीसरी बार प्रधान सेवक बनने का सफर मोदी को ”युगंधार“ के सांचे में ढाल गया। राष्ट्र सर्वाेपरि की भावना स्वाश में लिए भागवत की सोच को मोदी फसलों में बदलते गए। संघ की स्थापना से वरीयता पर रहे राम मंदिर निर्माण, शिक्षा में शाश्वत सनातनी परंपरा पुनः लागू करना, कश्मीर में धारा 370 का खात्मा और अन्य अहम एतिहासिक निर्णय किसी भी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय दबावों अछूते रहते हुए एक खाटी प्रचारक के बस की ही बात थी। 

ऐसा नही है कि मोदी युग मे सिर्फ संघ के दशकों से वरीयता पर रहे मुद्दों पर ही मुहर लगी हो। कुशल नेतत्व के तौर पर आतंकवाद और अलगाववाद जैसे भयाक्रांत माहौल से भी जनमानस को मुक्ति दिलाई। वही वैश्विक पैमाने पर देश का सर्वांगीण विकास निरन्तर जारी है। चाहे बात शिक्षा, स्वास्थ्य, अधोसंरचना, तकनिकी क्षेत्र में एतिहासिक मुकाम हासिल करने की हो। देश के महानगरों से लेकर राज्यो की राजधानियों, माद्यम शहरों और ग्राम पंचायतो में विकसित भारत की झलक मिलती। कटु है मगर सत्य है, अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त अधोसंरचना के मुताबिक आज की स्थिति में एक बहुत बड़ा वर्ग खुद को ढाल नही पाया है। 

जमीनी स्तर पर उतरने पर ऐसे कई प्रसंग जन जीवन मे दिखाई देते है। मसलन मॉडल रेलवे स्टेशनों, मेट्रो स्टेशनों पर लोगो को एक्सलेटरो पर उटली दिशा में चढ़ने के प्रयास आम तौर पर दिखाई देते है। तो इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन में अक्सर गरीब भोला भाला वर्ग ग्राहक की स्व.ईमानदारी पर आश्रित है। कारण निरक्षरता। खैर दो चार बार ठोकर खाकर आदमी समाधान सिख ही जाता है,पर मोदी युग मे देश के विकास की गति से जनमानस अभी भी रफ्तार नही पकड़ पा रहा है। 
शीर्षक था ”हिन्दत्व के मसीहा“ से मोडरेट मोदीत्व तक के सफर का तो। वर्ष 2014 में मोदी एक उम्मीद बनकर राष्ट्रीय पर आच्छादित हुए। हिंदुत्व के मसीहा बनकर उभरे मोदी के प्रधान सेवक के रूप में कार्यकाल में भारत वर्ष की शाश्वत सनातनी परंपराओ का जड़ो से पुनर्जागरण हुआ। मसलन सनातन धर्म के संस्थापक बहुसंख्यक वर्ग में सर्वस्वीकार्य जगतगुरुं आदि शंकराचार्य के समाधिस्थल केदारनाथ में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा, ओंकारेश्वर में शंकराचार्य कॉरिडोर निर्माण,  सनातनी धार्मिक स्थलो उज्जैन, ओंकारेश्वर, काशी, केदारनाथ के आसपास जीणोद्धार। मोदी युग मे हो रहे इस सामाजिक बदलाव के दौर में बहुसंख्यक वर्ग के मन मे ऐसी सनातनी चेतना जागृत हुई है कि आज वह गोवा, नैनीताल की बजाए स्वतः तीर्थ स्थलों चार धाम यात्रा कर गर्व से अपने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर यहाँ के फोटो शेयर करता है। 

मोदी की इस पहल का असर सामाजिक स्तर पर ही नही हुआ है। स्वतंत्रता के बाद से सेक्युलर शब्द के नाम पर अल्पसंख्यको के लिए पंद्रह सूत्री कार्यक्रम या अन्य योजनाओं की बात करने वाले आज अल्पसंख्यक वर्ग की बात करना भूल गए है। मोदी युग मे पुनर्जागृत हुई सनातनी चेतना के चलते अल्पसंख्यक के खलीफा बन अपनी राजनीति चमकाने वाले नेता अपने किसी भी कार्य की शुरुआत मंदिर में सर झुकाकर करते है। मोडरेट मोदीत्व में सेक्युलरिज्म शब्द की व्याख्या बदलकर सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास हो गई है। जिसके चलते विपक्ष अल्पसंख्यको से कोसो दूर भागकर लगातार जाती वाद के मुद्दे पर राजनीति के लिए विवश है। तो ट्रिपल तलाक, धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में सुशासन के बाद चुनाव और मोदी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थीयो में अल्पसंख्यक वर्ग की पूर्ण भागीदारी। मोडरेट मोदीत्व को बल देती है। 

ऐसा नही है कि संघ ने जन भावनाओ को देखते हुए अचानक नब्बे के दशक की शुरुआत में राम मंदिर निर्माण के आंदोलन की अगुवाई की हो। 

”राम“ हर सनातनी की आस्था है। संघ के गठन के वक्त से ही जनभावना से जुड़े मुद्दे पर जन-जागरण और जनसमर्थन जुटाने की दिशा में अग्रसर रहा। महाराष्ट्र में सुधीर फडके द्वारा एआईआर और राज्य भर में गीत रामायण का पाठ संघ की प्रेरणा से ही फलीभूत हुआ। आलम यह था कि रेडियो पर जब गीत रामायण प्रसारित होता तो लोग घरों में सम्मान पूर्वक रेडियो पर पुष्प अर्पित करते थे। कई मौकों पर स्वतंत्र वीर सावरकर और द्वितीय संघ प्रमुख माधव राव सदाशिव राव गोलवलकर गुरुजी ने भी फडके के गीत रामायण की प्रस्तुति में प्रत्यक्ष भाग लिया। संयोग से लालकृष्ण आडवाणी के नेतत्व में निकली राम रथ यात्रा में मोदी सारथी थे और उनके प्रधान सेवक रहते ही अयोध्या में राममंदिर का लोकार्पण हुआ। नियति में सब कुछ पूर्व निर्धारित होता है।

खैर अंत मे इतना ही कहा जा सकता है, कि मोदी के रूप में भारतवर्ष को मिले इस युगंधार के हस्ते समृद्ध शाश्वत सनातनी परंपरा के दामन पर लगे छींटे लगभग साफ से होते जा रहे है और संयोग से जहाँ-जहाँ खुदाई हो रही है, वहाँ-वहाँ शिवलिग निकलना भारत वर्ष की शाश्वत सनातनी संस्कृति के पुनर्स्थापन का स्वर्णिम युग है।

नोट-इंडियन न्यूज अड्डा पत्रिका के प्रकाशन की आवश्यकता इसलिए पड़ी की यूनेस्को द्वारा "ऋग्वेद" को सबसे प्राचीन ग्रंथ स्वीकारे के बावजूद आज भी हालही में सनातन पर विदेशी धरती पर भारत में संवैधानिक पदों पर आसीन लोग उंगली उठाते है, बड़े बड़े मठाधीश मौन है। हम अपने पाठको को आश्वस्त करते है,की भारत वर्ष का शाश्वत समृद्ध सनातन धर्म सिर्फ शून्य का आविष्कार ही नही करता,शून्यता से अनंत का सफर करने का प्रामाणिक सामर्थ्य भी रखता है।

आपका
दुष्यंत कुंटे 
07566595000