बच्चे एक लक्ष्य बनाएं और उसपर अडिग रहें, यही सफलता का मूल मंत्र - डॉ. लीला जोशी*

बच्चे एक लक्ष्य बनाएं और उसपर अडिग रहें, यही सफलता का मूल मंत्र - डॉ. लीला जोशी*

पहले दिन मध्यप्रदेश की 'मदर टेरेसा' पद्मश्री डॉ. लीला जोशी का प्रेरणादायी व्याख्यान

गर्भ में भी सीखते हैं बच्चें, सकारात्मक रखें अपने आसपास का माहौल

इंदौर। मालवा की मैडम मोंटेसरी, बाल शिक्षा की जननी और समाजसेवा को शिक्षा से जोड़ने वाली महान विभूति स्वर्गीय पद्मश्री शालिनी ताई मोघे की 14वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में पागनीस पागा स्थित बाल निकेतन संघ द्वारा आयोजित दो दिवसीय विशेष व्याख्यान श्रृंखला का भावपूर्ण शुभारंभ हुआ। 30 जून की सुबह संस्था प्रांगण में आयोजित पहले दिन के कार्यक्रम में देश की प्रसिद्ध समाजसेविका एवं महिला स्वास्थ्य क्षेत्र की सशक्त आवाज, पद्मश्री डॉ. लीला जोशी ने अपने अनुभव साझा किए। इस आयोजन का उद्देश्य न केवल शालिनी ताई के अतुलनीय योगदान को स्मरण करना है, बल्कि उनके सेवा-संकल्प, शिक्षण दृष्टिकोण और सामाजिक चेतना को नई पीढ़ी के समक्ष प्रस्तुत करना भी है।

कार्यक्रम की शुरुआत परंपरागत दीप प्रज्वलन, प्रार्थना, भजन और शालिनी ताई के चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुई। इसके पश्चात बाल निकेतन संघ के विद्यार्थियों ने एक विशेष गीत प्रस्तुत किया, जिसे उन्होंने भूतपूर्व शिक्षिका नेहा एंदलाबादकर द्वारा शालिनी ताई की स्मृति में लिखा और तैयार किया था। गीत के बोल—“जो डरी नहीं, रुकी नहीं, तुम एक वो मिसाल हो”—ने पूरे सभागार को भावविभोर कर दिया। इस गीत में ताई के संघर्ष, समर्पण और अद्वितीय सेवा को बच्चों की मासूम लेकिन गहरी अभिव्यक्ति में उतारा गया था, जिसने श्रोताओं की आंखें नम कर दीं।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि, मध्यप्रदेश की 'मदर टेरेसा' के नाम से विख्यात, पद्मश्री डॉ. लीला जोशी रहीं। उन्होंने अपने व्याख्यान में न केवल स्वास्थ्य सेवा के अनुभव साझा किए, बल्कि बच्चों के मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास पर भी गंभीर चिंतन प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, “बच्चों को अपने लक्ष्य पर अर्जुन की तरह ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जिस तरह अभिमन्यु ने गर्भ में रहकर चक्रव्यूह में प्रवेश की कला सीखी थी, उसी तरह आज के बच्चे भी गर्भकाल से ही अपने आसपास के वातावरण से सीखते हैं। यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम उन्हें एक सकारात्मक, संस्कारयुक्त वातावरण दें। एक अच्छी शुरुआत ही अच्छे समाज की नींव होती है।”

 विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य, भावनात्मक स्थिति और उनके संपर्क में आने वाले सामाजिक परिवेश को महत्त्वपूर्ण बताया। “मातृत्व का सम्मान और उसकी सुरक्षा समाज के प्रत्येक सदस्य की जिम्मेदारी है। जब हम एक गर्भस्थ शिशु के विकास को समझते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा का आरंभ गर्भ से ही हो जाता है।”

 बच्चों और शिक्षकों की सराहना करते हुए कहा, “शालिनी ताई हम सभी के लिए एक ऐसी प्रेरणा हैं, जिन्होंने शिक्षा को केवल अक्षर ज्ञान तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे सेवा और संस्कार का माध्यम बनाया। आप सभी बच्चे बहुत खुशनसीब हैं कि आपको बाल निकेतन संघ जैसा शिक्षा केंद्र मिला है, जहाँ आपको केवल ज्ञान ही नहीं, एक समर्पित और संवेदनशील दृष्टिकोण भी सिखाया जा रहा है। मैं समस्त स्टाफ को बधाई देती हूँ कि वे आने वाले भारत का भविष्य गढ़ने में जुटे हैं।”

बाल निकेतन संघ की सचिव डॉ. नीलिमा अदमणे ने कहा, “शालिनी ताई हमारे लिए एक विचार हैं, जो हर बच्चे की मुस्कान में, हर शिक्षिका की मेहनत में और हर सामाजिक कार्यकर्ता की संवेदना में जीवित रहती हैं। यह व्याख्यान श्रृंखला उसी विचार को आगे ले जाने का प्रयास है। उनका समर्पण, नारी शिक्षा के प्रति जागरूकता और बाल संरक्षण के लिए उठाए गए कदम आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक हैं। इस व्याख्यान श्रृंखला का उद्देश्य महज़ एक श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि शालिनी ताई के मूल्यों को हम केवल याद न करें, बल्कि उन्हें अपने कर्म और चिंतन में उतारें। आज डॉ. लीला जोशी जैसी जमीनी कार्यकर्ता को सुनना, हम सभी के लिए एक सीख है कि सेवा का रास्ता कितना कठिन होते हुए भी कितना गहरा और अर्थपूर्ण हो सकता है।”

कार्यक्रम के समापन पर संस्था की ओर से डॉ. लीला जोशी का स्मृति चिन्ह और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मान किया गया। वहीं मनन पुराणिक को जिसने पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उसे व उसके अभिभावकों को सम्मानित किया गया। वहीं हर साल की तरह इस साल भी पौधारोपण कर बड़े ताई को याद किया गया। इस श्रृंखला का दूसरा दिन 1 जुलाई को मनाया जाएगा, जिसमें लेफ्टिनेंट कर्नल आशिष मंगरुलकर 'ऑपरेशन सिन्दूर' और राष्ट्रसेवा से जुड़े अपने बहुमूल्य अनुभव साझा करेंगे।