ऑपरेशन सिंदूर: युद्ध के मैदान से परे, सच्चाई की लड़ाई जारी है

ऑपरेशन सिंदूर: युद्ध के मैदान से परे, सच्चाई की लड़ाई जारी है

ऑपरेशन सिंदूर: युद्ध के मैदान से परे, सच्चाई की लड़ाई जारी है

ऑपरेशन सिंदूर: युद्ध के मैदान से परे, सच्चाई की लड़ाई जारी है

✍️ लेखक: संपादकीय मंडल, इंडियन न्यूज़ अड्डा

 ऑपरेशन सिंदूर – युद्ध की धूल में धुंधलाए सच, किसे मानें सच्चा?
वर्तमान में भारत और पकिस्तान युद्ध के बाद जो सवाल किये जा रहे है,  उससे 
ऑपरेशन सिंदूर: सत्य की तलाश में भटकती कहानी एक अंतिम ठिकाना देना जरूर बनता है.आज जो दावे किये जा रहे है उससे आम जनता  हकीकत जाने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे  ऑपरेशन सिंदूर पर  राष्ट्रीय विश्वसनीयता के जो प्रश्न चिन्ह लगाए जा रहे उन्हें कही ना कही अल्पविराम देना जरुरी है. 

"एक शीशा भी नहीं टूटा…" – राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के इस वाक्य ने जितनी शांति फैलाई, उतने ही सवाल भी खड़े कर दिए।
भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया टकराव, "ऑपरेशन सिंदूर", न केवल सैन्य स्तर पर एक बड़ा घटनाक्रम रहा, बल्कि सूचना युद्ध (Information Warfare) का भी एक प्रमुख उदाहरण बन चुका है। दोनों ओर से विरोधाभासी दावे सामने आ रहे हैं। किसी का एक भी विमान नहीं गिरा, तो कोई छह से नौ भारतीय लड़ाकू विमानों को निशाना बनाने का दावा कर रहा है। ऐसे में सच्चाई कहाँ है? और क्या यह सच्चाई जानने की चाह अब जनता का अधिकार नहीं बनती?

 पाकिस्तान का दावा: प्रचार या प्रमाण?
पाकिस्तानी सेना और ISPR (Inter Services Public Relations) ने मीडिया के ज़रिए यह प्रचार किया कि उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान 6–9 भारतीय लड़ाकू विमान, जिनमें राफेल जैसे आधुनिक विमान भी शामिल बताए जा रहे हैं, मार गिराए। उन्होंने कुछ फूटेज और धुंधले वीडियो क्लिप्स दिखाए, जिनकी प्रमाणिकता पर अब तक कोई अंतरराष्ट्रीय एजेंसी ने मुहर नहीं लगाई है।

 भारत की प्रतिक्रिया: रणनीतिक चुप्पी या नियंत्रित पारदर्शिता?
भारतीय वायुसेना (IAF) और रक्षा मंत्रालय की ओर से आए बयान इससे बिल्कुल उलट हैं। भारत का दावा है कि:

पाकिस्तान के 6 लड़ाकू विमान,
=2 AWACS निगरानी विमान,
=1 C-130 हेरक्यूलिस परिवहन विमान,
=30 से अधिक मिसाइलें और
=कई UAVs/UCAVs नष्ट किए गए।

NSA अजित डोभाल का बयान, "एक शीशा भी नहीं टूटा" एक सधा हुआ राजनीतिक वाक्य लगता है, लेकिन जनरल अनिल चौहान का बयान कि "नुकसान हुआ, लेकिन रणनीतिक रूप से बड़ा नहीं था," इस सधेपन पर एक व्यावहारिक दृष्टिकोण रखता है।

⚖️ राफेल विवाद: सच की उड़ान या भ्रम का पतन?
डसॉल्ट एविएशन (Dassault Aviation) ने शुरुआती बयानों में किसी भी राफेल के गिरने से साफ इनकार किया था। लेकिन अब एक बयान में कहा गया कि "संभावित तौर पर एक विमान युद्ध क्षेत्र में गायब हुआ है, जिसकी जांच जारी है।" यह विरोधाभास भारत सरकार की बातों के साथ मेल नहीं खाता। तो क्या जनता को "ज़रूरी जानकारी से वंचित रखने की नीति" अपनाई जा रही है? या फिर यह सूचनाओं की सावधानीपूर्वक निगरानी है ताकि मनोबल बना रहे?

 अंदरूनी खुलासा: कैप्टन शिव कुमार का बयान
इंडोनेशिया स्थित भारतीय रक्षा अताशे कैप्टन शिव कुमार का बयान स्थिति को नई रोशनी में लाता है। उन्होंने कहा, "ऑपरेशन के शुरुआती चरण में राजनीतिक नेतृत्व के निर्देश थे कि पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को निशाना नहीं बनाया जाए। इसी सतर्कता के कारण कुछ विमानों की स्थिति कमजोर हुई।" यह बयान स्पष्ट करता है कि युद्ध सिर्फ हथियारों से नहीं, नीतियों और आदेशों से भी लड़ा जाता है।

 और फिर ट्रम्प आ गए...
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी शैली में दावा किया कि "भारत-पाक युद्ध मैंने रोका।" उन्होंने यह भी कहा कि भारत के पांच विमान गिर गए थे। यह बयान न तो भारत ने स्वीकार किया, न ही अमेरिका के किसी अन्य अधिकारी ने पुष्टि की। क्या ट्रम्प फिर से अपने पुराने चुनावी पैंतरों में "मध्यस्थता" और "वर्ल्ड लीडरशिप" कार्ड खेल रहे हैं? अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प का दावा कि उन्होंने इस युद्ध को रोका है, दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में अमेरिका की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है। यह हस्तक्षेप कई सवाल खड़े करता है:
क्या भारत और पाकिस्तान अब स्वतंत्र रूप से अपने विवाद सुलझाने में सक्षम नहीं हैं? अमेरिकी हस्तक्षेप क्या इस क्षेत्र में एक नई व्यवस्था की शुरुआत है? ट्रम्प के इस दावे का भारत और पाकिस्तान की संप्रभुता पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

ट्रम्प का "पांच जेट मार गिराए गए" वाला बयान भी दिलचस्प है क्योंकि यह किसी भी पक्ष की आधिकारिक स्थिति से मेल नहीं खाता। यह या तो अमेरिकी गुप्तचर एजेंसियों की जानकारी पर आधारित है या फिर राजनीतिक लाभ के लिए दिया गया बयान है।

नैरेटिव वॉरफेयर की जटिलताएं:
राष्ट्रीय मनोबल बनाम सत्य: सरकारें अक्सर राष्ट्रीय मनोबल बनाए रखने के लिए सत्य को तिरछा करती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय छवि का दबाव: विदेशी निवेशकों और सहयोगियों के सामने मजबूत दिखने का दबाव।
चुनावी राजनीति: आगामी चुनावों में सैन्य सफलता का राजनीतिक उपयोग।

⚠️ विपक्ष के सवाल: राष्ट्रहित या राजनीतिक लाभ?
भारत का विपक्ष इस पूरे ऑपरेशन को "विफल" करार दे रहा है। उनका कहना है कि:
=सरकार ने सच छिपाया,
=विमानों की संख्या और नुकसान को छुपाया जा रहा है,
=और IAF को पूरी स्वतंत्रता नहीं दी गई।
पर क्या विपक्ष राष्ट्रहित में सच्चाई जानना चाहता है या सिर्फ राजनीतिक लाभ लेना?

जब युद्ध की धूल बैठती है… 
"ऑपरेशन सिंदूर" केवल गोलियों और मिसाइलों की लड़ाई नहीं थी, यह "प्रत्यंचा और प्रवचन" का युद्ध भी था – एक तरफ रणनीति, दूसरी तरफ प्रचार।
सवाल यह नहीं कि किसका विमान गिरा — सवाल यह है कि किसकी सच्चाई जनता तक पहुँची?
हमारा लोकतंत्र सिर्फ बैलेट बॉक्स से नहीं, पारदर्शिता और विवेकशील संवाद से भी मजबूत होता है। और जब तक सरकारें, मीडिया और विपक्ष एक साझा सत्य के लिए एकत्र नहीं होते, तब तक हर ऑपरेशन के बाद 'सच्चाई' भी युद्ध का शिकार बनती रहेगी।

निष्कर्ष : सच्चाई की तलाश और ठोस तथ्य
= पाकिस्तान के दावों का कोई विश्वसनीय, स्वतंत्र प्रमाण नहीं मिला कि उसने भारतीय राफेल या अन्य लड़ाकू विमान युद्ध में गिराए।
= भारत ने प्रारंभिक चरण में, राजनीतिक और सैन्य रणनीतिक कारणों से, कुछ विमान खोने की स्वीकारोक्ति की, किन्तु बड़ी संख्या के नुकसान और खासकर राफेल के गिरने से इनकार किया।
= उपग्रह चित्र, मीडिया रिपोर्ट्स, और दोनों देशों के आधिकारिक वक्तव्यों में "सूचना युद्ध" अधिक, तथ्यात्मक सामंजस्य कम दिखता है।
= सच यह है कि इस युद्ध ने रणनीतिक, राजनीतिक और सूचनात्मक स्तरों पर एक नई जटिलता पैदा की, जहाँ किसी भी दावे की पुष्टि स्वतंत्र और पारदर्शी जांच/प्रमाण के बिना नहीं की जा सकती।

युद्ध और सैन्य ऑपरेशनों से जुड़ी जानकारी में प्रचार, राजनीति और कूटनीति का मिश्रण होता है। सत्य को समझने के लिए हमें कुछ पहलु पर ध्यान देना जरुरी है. 
= सैन्य अधिकारियों (जैसे CDS) और तटस्थ स्रोतों (जैसे डसॉल्ट) के बयानों पर भरोसा करें।
= दोनों देशों के सरकारी दावों को संदेह के साथ देखें, क्योंकि ये प्रचार का हिस्सा हो सकते हैं।
= सोशल मीडिया (X) पर अफवाहों से बचें और केवल विश्वसनीय स्रोतों पर ध्यान दें।
= युद्ध के नुकसान को पूरी तरह छुपाना मुश्किल होता है, इसलिए दोनों पक्षों के कुछ नुकसान की संभावना मानें।

 आपके विचार?
क्या आपको लगता है कि सरकार को युद्धों और सैन्य अभियानों से जुड़ी अधिक जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए?
क्या युद्धों की सच्चाई जानने का अधिकार नागरिकों को होना चाहिए?

✒️ अपनी राय हमें भेजें – अगली अंक में प्रकाशित किया जाएगा।

Adv. तुषार पाटील 
संपादक 
इंडियन न्यूज़ अड्डा