(विश्वास से ही सिद्धि) धर्मेंद्र श्रीवास्तव धार,

(विश्वास से ही सिद्धि) धर्मेंद्र श्रीवास्तव धार,
(विश्वास से ही सिद्धि) धर्मेंद्र श्रीवास्तव धार,

"इंडियन न्यूज़ अड्डा"

धर्मेंद्र श्रीवास्तव धार, 

"विश्वास से ही सिद्धि"

जीवन में उतार-चढ़ाव लगे रहते हैं..... 

सु:ख और दुख वस्त्र

 की तरह हैं, 

सदैव एक ही वस्त्र पहन कर नहीं रहा जा सकता,

आज सुख है तो सदैव सुख बना रहेगा यह संभव नहीं है, 

दु:ख आज के सुख के पीछे कतारबद्ध होकर पहले से ही खड़ा है, 

दुख है तो सदैव दु:ख रहेगा ऐसा भी नहीं है, 

जीवन में कोई भी दु:ख इतना बड़ा नहीं कि पराजित न किया जा सके, 

मनुष्य अपार शक्तियों का स्वामी है, 

उसके सामर्थ्य के आगे कोई भी दु:ख, कोई भी विपत्ति खड़ी नहीं रह सकती हैं सुरक्षित रहना मानव शक्ति का परिचायक है..... 

वास्तविक शक्ति आत्मबल मे हैं...

"सुख है तो संयमित रहें" 

और

 "दु:ख में धैर्यवान बनें" 

संयम और धैर्य विश्वास से आते हैं, 

मन में अटुट विश्वास हो जीवन के सुमार्ग पर चलने का....

पंछियों को देख मनुष्य ने विश्वास किया कि वह भी उड़ सकता है तो उसने वायुयान बना लिया, मछलियों को देख उसे विश्वास हुआ कि वह भी 'जल के अंदर रह सकता है तो उसने पनडुब्बी बना ली,

संसार में बहुत कुछ ऐसा हुआ है, जो मनुष्य के विश्वास का व्यवहार में परिवर्तित हो जाना था, यह निरी बौद्धिकता नहीं है, मन का विश्वास ही बुद्धि और ज्ञान को आधार प्रदान करता है।

वास्तव में मन में बैठा परमात्मा विश्वास की शक्ति का जनक है, मनुष्य के चेतन-अवचेतन को वही प्रभावित करता है, परमात्मा के संकेतक प्रत्येक मनुष्य को निरंतर प्राप्त होते रहते हैं, 

मन और मस्तिष्क यदि अज्ञान, स्वार्थों के कोहरे से आच्छादित हैं तो उन संकेतकों को धारण करना कठिन हो जाता है, मनुष्य अपने अंतस की भाषा समझने और सुनने का अभ्यस्त हो तो कभी दिशा भ्रम नहीं होगा, यह विश्वास ही उसकी शक्ति है इस शक्ति के साथ वह दुर्गम से दुर्गम पथ भी पार कर जाता है। दुख होते हैं, फिर भी वह दुखों से निर्लिप्त रहता है, सुख उसके संयम को भंग नहीं करते, 

परमात्मा प्रदत्त शक्ति क्षुद्रता में सिमट जाने के लिए नहीं, व्यापकता का अंग बनने में है।

आस्था और विश्वास को जीवन में अटूट रखिए आपके कार्य सदैव सिद्ध होंगे.....