धर्म, संस्कार और सेवा की पहली सीढ़ी है विनम्रता सफलता के शिखर तक पहुंचने के लिए ‘नमो’ को आत्मसात करें – प.पू. आचार्य विश्वरत्न सागर

इंदौर,। अहंकार, अभिमान, घमंड और अकड़ जैसे अवगुण मनुष्य को पतन के मार्ग पर ले जाते हैं। भगवान महावीर स्वामी ने जीवन के अंतिम संदेश में उत्तराध्ययन सूत्र में सबसे पहले जिस शब्द का प्रयोग किया, वह है ‘नमो’। ‘नमो’ अर्थात नमन, नमना, झुकना। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता पाने के लिए विनम्रता जरूरी है। जिसने झुकना सीख लिया, वह जीवन में कहीं नहीं हार सकता। झुकने वाला जीवनभर के लिए दूसरों को अपना बना लेता है। सफलता का पहला सूत्र है विनय, विनम्रता और झुकना। कई बार हारने में भी जीत का आनंद मिलता है और कुछ अवसरों पर जीतने वाला भी हार की स्थिति में माना जाता है। धर्म, संस्कार और सेवा की पहली सीढ़ी विनम्रता ही है। इन सदगुणों के बिना अपने लक्ष्य, मंजिल और शिखर तक पहुंचना किसी के भी लिए संभव नहीं है।
एयरपोर्ट रोड, नरसिंह वाटिका पर अर्बुद गिरिराज जैन श्वेताम्बर तपागच्छ उपाश्रय ट्रस्ट पीपली बाजार, जैन श्वेताम्बर मालवा महासंघ एवं नवरत्न परिवार इंदौर के तत्वावधान में चल रहे चातुर्मासिक अनुष्ठान में युवा हृदय सम्राट जैनाचार्य प.पू. विश्वरत्न सागर म.सा. ने शनिवार को उत्तराध्ययन सूत्र पर आधारित महावीर कथा के शुभारंभ सत्र में उक्त दिव्य बातें कही। नरसिंह वाटिका पर आज से महावीर स्वामी की अंतिम देशना पर आधारित उस ग्रंथ की विवेचना का शुभारंभ हुआ, जिसकी रचना उन्होंने अंतिम संदेश के रूप में की है। इस ग्रंथ का पहला अध्याय है - विनय सूत्र। धर्मसभा में ग्रंथ बोहराने का लाभ बादलदेवी टोडरमल कटारिया परिवार ने लिया। ज्ञान पूजा के लाभार्थी दिलसुखराज कटारिया, अचलाचंद खूबचंद मिर्चीवाला, सुभाष कांग्रेसा, महेश मुकेश कुमार एवं जयंतीलाल प्रवीण श्रीमाल परिवार रहे, जिन्होंने जिन शासन के जयघोष के बीच पूजा संपन्न की। समाजबंधुओं की अगवानी अध्यक्ष पारस बोहरा, शेखर गेलड़ा, अंकित मारू, रितीश आशीष जैन, मोनीश खुबाजी एवं ऋषभ कोचर ने की।
आयोजन समिति के मनीष सुराना, प्रीतेश ओस्तवाल एवं पुण्यपाल सुराना ने बताया कि नरसिंह वाटिका में मालवांचल के अनेक शहरों, कस्बों के समाजबंधु भी धर्मलाभ लेने आ रहे हैं। रविवार को सुबह 9 बजे से ‘संबंधों की डोर’ विषय पर आचार्यश्री विश्वरत्न सागर म.सा. के सानिध्य में विद्वान वक्ता घर-परिवार के रिश्तों को सहेजने-संवारने और मजबूत बनाने के सरल सूत्र बताएंगे।
आयोजन से जुड़े ललित सी. जैन, कैलाश नाहर, दीपक सुराना एवं शैलेन्द्र नाहर ने बताया कि उत्तराध्ययन सूत्र की विवेचना करते हुए मुनिप्रवर उत्तमरत्न सागर म.सा. ने कहा कि संसार में मांगने पर कम, लेकिन बिना मांगे ज्यादा मिलता है। हम इंटरनेशनल मांगीलाल बनकर हर जगह मांगने में माहिर बने हुए हैं। मंदिर जाने पर भी मांगते ही रहते हैं उत्तराध्ययन सूत्र वसीयत की तरह है, जिसे भगवान महावीर स्वामी ने हम सबके लिए लिखा है। गणिवर्य कीर्तिरत्न सागर म.सा. ने भी सिद्धि तप, आराधना, आयम्बल एवं चातुर्मास के दौरान की जाने वाली तप-साधना से जुड़कर अपने जीवन को सार्थक बनाने का आव्हान किया।
प.पू. जैनाचार्य विश्वरत्नसागर म.सा. ने कहा कि अकड़ना मुर्दों की पहचान होती है। भीतर की अहंकारिता ही सारे विवादों को जन्म देती है। सास-बहू, परिवार, संस्था, संगठन कोई भी अहंकार से अछूते नहीं रह पाते हैं। हम किसी भी संस्था, संगठन या परिवार के सदस्य हों, अहंकार और अकड़ता के कारण ही सारे विवादों का जन्म होता है। इसके विपरीत जहां विनम्रता और नमन या वंदन का भाव होगा, वहां सबके बीच समन्वय से सारे काम सफल एवं सार्थक होते हैं। अरिहंत बनने की प्रक्रिया ‘नमो’ से ही शुरू होती है। नवकार महामंत्र का पहला शब्द ‘नमो’ और दूसरा शब्द है अरिहंत। पहले नमो, फिर अरिहंत । अरिहंत वही बन पाएगा जो ‘नमो’ को आत्मसात करेगा। धर्म, सेवा और संस्कार की पहली सीढ़ी विनम्रता है। भीतर के अवगुणों का शमन करना है तो झुकना सीखना ही पड़ेगा। हारकर भी जीतना और जीतकर भी हारना- इसका आनंद तभी मिलेगा जब हम नम्रता और विनम्रता को हमारे स्वभाव का हिस्सा बना लेंगे।