सुशासन के लिए सशक्त, संवेदनशील और सुदृढ़ शासन जरूरी शासन में आने के उद्देश्य से निश्चित होता है की शासन कैसा है - बोरिकर

*सुशासन के लिए सशक्त, संवेदनशील और सुदृढ़ शासन जरूरी*
*शासन में आने के उद्देश्य से निश्चित होता है की शासन कैसा है - बोरिकर*
इंदौर। प्रसिद्ध विचारक एवं सामाजिक कार्यकर्ता श्री हरि बोरिकर ने कहा है कि सुशासन के लिए सशक्त, संवेदनशील और सुदृढ़ शासन जरूरी है। कोई भी राजनीतिक दल जब शासन में आता है तो शासन में आने के उद्देश्य से यह निश्चित होता है कि यह शासन कैसा है।
वे आज यहां अभ्यास मंडल की 64 वीं ग्रीष्मकालीन व्याख्यान माला के पहले दिन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उनके विषय था सुशासन का आधार - नागरिक कर्तव्य। उन्होंने कहा कि सबसे पहले यह देखना होगा कि देश में शासन कैसा है? जो लोग शासन में हैं वह कैसे चुने गए, उनका व्यवहार कैसा है, उनकी योजना क्या है और उनका सत्ता में आने का उद्देश्य क्या है? सुशासन में शासन के आगे जो सु शब्द लगा है, उसके कई अर्थ है। इसके अनुरूप शासन सुदृढ़ , सशक्त, संवेदनशील , प्रयोग के द्वारा नवाचार लाने वाला, संयमित होना चाहिए। जब शासन संवेदनशील नहीं होता है तो उसके गलत परिणाम देश को भुगतने पढ़ते हैं। एक बार संविधान निर्माता डॉ बाबासाहेब अंबेडकर से पूछा गया था की संविधान सफल होगा या असफल होगा, तो उन्होंने जवाब दिया था कि यह इस बात पर निर्भर रहेगा कि यह संविधान किसके हाथों में है।
उन्होंने कहा कि देश में एक ही संविधान है लेकिन उसके बावजूद राज्य की सत्ता के साथ असमानता नजर आती है। चुनाव में सभी जनता के समक्ष जाकर अपना मत रखते हैं और फिर जनता के द्वारा दिए गए फैसले के आधार पर काम करते हैं। सत्ता में आने के बाद हर नागरिक एक समान होता है। चुनाव के बाद किसी नागरिक के साथ कोई भेदभाव नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2012 में भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण का आंदोलन शुरू हुआ था। इस आंदोलन से कुछ लोग उभर कर सामने आए। उन्होंने भाषण दिए और फिर जब 10 साल तक में सत्ता में रहे तो उस दौरान छठ पूजा करने वाले लोगों को यमुना के प्रदूषित पानी में नहाना पड़ा। ऐसे में प्रश्न यह है कि शासन में आने का उद्देश्य क्या है ? स्थिति में परिवर्तन की जनता अपेक्षा करती है। हर नागरिक चाहता है की इसके लिए प्रगति मूलक परिवर्तन होना चाहिए। सरकार के द्वारा उसके कल्याण की योजना का निर्धारण और संचालन किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हमारे देश के संविधान में मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य दिए गए हैं। मेरा यह मानना है कि दोनों में कोई अंतर नहीं है। एक व्यक्ति एक समय तक अधिकार की बात करता है और उस समय के बाद में अपने कर्तव्य का निर्वहन करता हुआ नजर आता है। इस कर्तव्य निर्वहन का ही यह परिणाम है कि कश्मीर का आतंकवाद श्रीनगर से जम्मू तक नहीं पहुंच सका। सत्ता में बैठे हुए लोग यदि संवेदनशील नहीं है तो भी जनता के जीवन में परिवर्तन लाने वाली योजना नहीं बना सकेंगे। हाल की स्थिति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पहलगाम में आतंकवादियों के हमले में जिन महिलाओं के माथे का सिंदूर मिटाया गया उसका जवाब देने के लिए सरकार जब ऑपरेशन सिंदूर चलाती है तो सरकार की संवेदनशीलता सभी को नजर आती है। ऐसे में व्यक्ति को यह महसूस होता है कि जब शासन इतना कर रहा है तो मुझे भी कुछ करना चाहिए ।
बोरिकर ने कहा कि आने वाले समय में हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती विचारों की अभिव्यक्ति के अधिकार के दुरुपयोग की रहेगी। इस अधिकार का दुरुपयोग रोकने के लिए उसकी सीमा रेखा तय की जाना चाहिए। भारत को हमें भारत बनाए रखना है । इसके सांस्कृतिक मूल्य को तहस-नहस करने के प्रयासों को नाकाम करना होगा। आज जो लीव इन, सेम सेक्स मैरिज , ओटीटी प्लेटफॉर्म हैं इनका हमें मुकाबला करना होगा। इस सबके लिए आवश्यक है कि हमारे अंतर्मन में भारत के भारत होने का बोध हो।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता सांसद शंकर लालवानी ने की। उन्होंने कहा कि अभ्यास मंडल, इंदौर का दर्पण है। इंदौर में जो होता है वह अभ्यास मंडल दिखता है। संस्था का परिचय माला सिंह ठाकुर ने दिया। स्वागत भाषण व्याख्यान माला समिति के अध्यक्ष अशाेक चितले ने दिया। अतिथियों का स्वागत अशोक कोठारी, वैशाली खरे, स्वप्निल व्यास, यान्या सिसोदिया ने किया। अतिथि वक्ता को स्मृति चिन्ह पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता अर्चना खेर ने भेंट किया। अंत में आभार प्रदर्शन अशोक बड़जात्या ने किया। कार्यक्रम का संचालन पल्लवी अढाव ने किया।:
कार्यक्रम में संपत झवर, रामबाबू अग्रवाल,आलोक खरे, राजेंद्र जैन कुलदीप अग्निहोत्री, मेघा बर्वे सुशीला यादव आदि उपस्थित थे
आज का व्याख्यानअभ्यास मंडल के अध्यक्ष रामेश्वर गुप्ता ने बताया कि 11 में रविवार को शाम 6:30 बजे से सेवानिवृत्ति विंग कमांडर अनुमा आचार्य का व्याख्यान होगा। उनका विषय है भारतीय सेना में महिलाओं की भूमिका।