सोया इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस 2025’ के पहले दिन पोषण, कृषि और उद्यमिता को लेकर हुई व्यापक चर्चा

सोया इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस 2025’ के पहले दिन पोषण, कृषि और उद्यमिता को लेकर हुई व्यापक चर्चा
इंदौर आज जब विश्व स्वास्थ्य संकट, पोषण असंतुलन, जलवायु परिवर्तन और खाद्य असुरक्षा जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है, ऐसे समय में टिकाऊ और सुलभ प्रोटीन स्रोतों की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है। इन्हीं मुद्दों पर केंद्रित ‘सोया इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस 2025’ का आयोजन सोया फूड प्रमोशन एंड वेलफेयर एसोसिएशन (SFPWA) द्वारा 4 अप्रैल से 5 अप्रैल 2025 तक दो दिवसीय कार्यक्रम के रूप में इंदौर के मैरियट होटल में किया जा रहा है। आज सम्मेलन का पहला दिन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ, जिसमें भारत और अमेरिका सहित विभिन्न देशों से आए कृषि वैज्ञानिकों, पोषण विशेषज्ञों, उद्यमियों, नीति-निर्माताओं और कृषकों ने भाग लिया।
कार्यक्रम का उद्घाटन एसएफपीडब्लूए के चेयरमैन डॉ. सुरेश इतापू, यूएस सोयाबीन एक्सपोर्ट काउंसिल के रीजनल डायरेक्टर केविन रोएप्के, एसएफपीडब्लूए के मुख्य संरक्षक गिरीश मतलानी और पतंजलि फूड्स के सीईओ संजीव अस्थाना द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया। उद्घाटन सत्र के पश्चात विभिन्न तकनीकी सत्रों और पैनल चर्चाओं की श्रृंखला आरंभ हुई, जिनमें कुल 25 से अधिक वक्ताओं ने अपनी सहभागिता दी।
पहले दिन की चर्चाओं में यह बात सामने आई कि भारत में 85% से अधिक आबादी में प्रोटीन की कमी है, जो शरीर के विकास और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालती है। विशेष बात यह रही कि 80% मांसाहारी भारतीयों में भी प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा नहीं पाई गई। इन तथ्यों की पृष्ठभूमि में, सोया को एक सुलभ, सस्ता और अत्यंत पोषक प्लांट-बेस्ड प्रोटीन के रूप में प्रस्तुत किया गया।
विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि सोया न केवल पोषण की समस्या का समाधान प्रदान करता है, बल्कि यह पारंपरिक पशु-आधारित प्रोटीन स्रोतों की तुलना में कहीं अधिक टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल है। सोया की खेती में जल, भूमि और ऊर्जा की खपत अपेक्षाकृत कम होती है और यह पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाता है। शोध के अनुसार, केवल एक टन सोयाबीन उत्पादन से लगभग 40 लाख गैलन पानी की बचत की जा सकती है।
एसएफपीडब्लूए के चेयरमैन डॉ. सुरेश इतापू ने कहा,* “भारत में 12 करोड़ से अधिक लोग डायबिटीज़ से पीड़ित हैं। सोया ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में उपयोगी है, साथ ही यह हृदय रोगों के जोखिम को भी कम करता है। यह एक बहुउपयोगी, किफायती और प्रभावी प्रोटीन स्रोत है, जिसे आहार में विविध रूपों में शामिल किया जा सकता है। पहले दिन की चर्चाओं में मुख्य रूप से भारत में प्रोटीन की कमी, सोया की पोषण में भूमिका, पर्यावरणीय दृष्टिकोण से टिकाऊ कृषि मॉडल, सोया आधारित उद्योगों के लिए निवेश अवसर, टेक्नोलॉजी और इनोवेशन के ज़रिए सोया प्रसंस्करण में सुधार, और ग्रामीण क्षेत्रों में कृषकों के लिए लाभकारी फसल के रूप में सोया को प्रोत्साहित करने जैसे विषयों पर विस्तार से चर्चा हुई। विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि कैसे सोया आधारित उत्पादों के माध्यम से न केवल आमजन की सेहत सुधारी जा सकती है, बल्कि देश की आर्थिक और औद्योगिक वृद्धि में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया जा सकता है।”
यूएस सोयाबीन एक्सपोर्ट काउंसिल के रीजनल डायरेक्टर केविन रोएप्के ने अपने संबोधन में कहा,* “सोया आज दुनिया की पोषण और खाद्य चुनौतियों का एक वैज्ञानिक समाधान बनकर उभर रहा है। यह केवल स्वास्थ्य नहीं, बल्कि टिकाऊ भविष्य और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए भी अनिवार्य है।”
एसएफपीडब्लूए के कोवेनर राज कपूर ने कहा, “सोया प्रोटीन न केवल स्वास्थ्य के लिए वरदान है, बल्कि भारतीय फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के लिए यह एक आर्थिक अवसर भी है। हमें सोया को ‘फ्यूचर फूड’ के रूप में अपनाने की आवश्यकता है, जो पोषण और बिज़नेस—दोनों दृष्टिकोणों से बेहद प्रासंगिक है। पहले दिन के सत्रों में सोया के पोषण मूल्य, इसके नए व्यावसायिक उपयोग, टेक्नोलॉजी इनोवेशन और प्लांट-बेस्ड फूड उद्योग में इसके बढ़ते महत्व पर चर्चा हुई। प्रमुख खाद्य और एग्री-टेक कंपनियाँ जैसे यूएस सोयाबीन एक्सपोर्ट काउंसिल, सोनिक बायोकेम, विप्पी सोया, पतंजलि फूड्स, मैरिको, सोलिडारिडाड, सेवर, पीसीके, सीएसके फूडटेक, बायोन्यूट्रिएंट्स ने सम्मेलन में भाग लेकर अपने इनोवेशन और अनुभव साझा किए। सोया आधारित उत्पाद जैसे सोया दूध, प्लांट-बेस्ड मीट, रेडी-टू-कुक फूड्स और सोया आइसक्रीम की संभावनाओं पर भी चर्चा की गई और इनसे जुड़े स्टार्टअप्स व नए उद्यमियों के लिए रास्ते खोले गए। सम्मेलन का दूसरा दिन (5 अप्रैल 2025) भी कई महत्वपूर्ण सत्रों, लाइव डेमो और बी2बी नेटवर्किंग मीटिंग्स के साथ जारी रहेगा, जिसमें सोया खाद्य व्यवसायों के विस्तार, एक्सपोर्ट संभावनाओं और नीति निर्माण पर गहन चर्चा की जाएगी।"