सृष्टि के प्रारम्भ से आज तक क्यों जीवित है ज्योतिष शास्त्र?
वेदों से ज्योतिष ज्ञान की जो परम्परा शुरु हुई है, उसका सिलसिला आज तक निरन्तर जारी है क्योंकि ज्योतिष शास्त्र एक वैज्ञानिक पृष्ठभूमि रखता है। अगर यह शास्त्र मनुष्यों के लिए अत्यन्त लाभदायक न होता, तो सृष्टि के प्रारम्भ से आज तक इसका अस्तित्व विद्यमान भी न होता और न ही इसका इतना विकास हो पाता।
ज्योतिष शास्त्र को कुछ लोग नहीं मानते हैं तथा इसे अंधविश्वास समझते हैं। ज्योतिष शास्त्र को एकबारगी अस्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि ज्योतिष विज्ञान ने एक लम्बे कालखण्ड के दौरान आम जनमानस को प्रभावित किया है। सृष्टि के प्रारम्भ से वर्तमान युग तक पहुंचते-पहुंचते ज्योतिष शास्त्र के साथ अनेक किंवदन्तियां और अंधविश्वास भी जुड़ गए हैं, ऐसे में ज्योतिष पर शोध एवं इसे आधुनिक विज्ञान से जोड़ेने की जरुरत निरन्तर बढती जा रही है। प्राचीन काल की तरह वर्तमान समय में ज्योतिष पर जितना अधिक शोध होगा, उतना ही ज्यादा ज्योतिष का विकास होगा और इस क्षेत्र में उत्पन्न हुई भ्रांतियों का निवारण होगा।
वैदिक काल से डिजिटल युग तक ज्योतिष की यात्रा
भविष्य के बारे में जानने की उत्सुकता मनुष्य की मूलभूत विशेषताओं में से एक है और इसी के चलते छः वेदांगों में एक ज्योतिष शास्त्र भी है, जिसे वेदों का नेत्र कहा जाता है। वेद से जुड़े ज्योतिष ज्ञान पर अनेक ग्रंथ मिलते हैं, वैदिक ज्योतिष में ऋग्वेद और यजुर्वेद से संदर्भित ज्ञान रूपी मंत्रों एवं सूत्रों का उल्लेख मिलता है। ज्योतिष का विकास ज्योतिष के अठारह प्रवृत्तकों सहित असंख्य आचार्यों ने अपनी क्षमता एवं प्रज्ञा के अनुसार किया है। श्रुति और स्मृति के माध्यम से इस ज्ञान को सुरक्षित रखा गया था, वैदिक काल में ज्ञान को गुरु-शिष्य परम्परा में श्रुति यानि सुनकर, स्मृति यानि याद कर संग्रहित किया जाता था, जो पीड़ी दर पीड़ी एवं गुरु-शिष्य परम्परा में आगे बड़ता गया। भोजपत्र का आविष्कार होने के बाद भोजपत्र पर ज्योतिष आदि विषयों का ज्ञान अंकित किया गया, फिर कागज़ पर ज्योतिष के अनेक कालजयी ग्रंथों को प्रकाशित किया गया, वर्तमान युग, डिजिटल युग है, जिसमें ज्योतिष का ई-ज्ञान संग्रहित हो रहा है।