भगवान को भक्त के दुख और आंसू कतई मंजूर नहीं – मुस्कान शर्मा

इंदौर, । नानीबाई के मायरे की कथा केवल पौराणिक कथा नहीं, समाज के लिए बेटियों के सम्मान का एक प्रेरक संदेश भी देती है। भगवान ने नानीबाई की प्रतिष्ठा बचाने के माध्यम से बेटियों के निर्मल एवं निश्छल मन की महत्ता भी बताई है। भगवान केवल मंदिर में मूर्ति बनकर दर्शन देने के लिए ही नहीं बैठे हैं, वे हर पल हमारे साथ हैं। हमारी करूणा और सच्ची पुकार उन तक उसी तरह पहुंचती है, जैसे नरसी मेहता और नानी बाई की पहुंची। भक्त की प्रतिष्ठा के लिए भगवान बेलगाड़ी भी चला सकते हैं और बिगड़ी हुई गाड़ी को भी खुद सुधार सकते हैं। भक्तों पर किसी तरह की आंच नहीं आने देना ही भगवान का पहला धर्म है। भगवान को अपने भक्त के दुख और आंसू कतई मंजूर नहीं हो सकते।
ये दिव्य विचार हैं श्यामप्रिया सुश्री मुस्कान शर्मा के, जो उन्होंने शुक्रवार को एयरपोर्ट रोड, अंबिकापुरी स्थित श्री खाटू श्याम धाम के 28वें वार्षिकोत्सव में चल रही नानी बाई के मायरे की कथा के दौरान व्यक्त किए। कथा में आज भगवान द्वारा 56 करोड़ का मायरा लेकर पहुंचने का प्रसंग सुनाया गया, जिसे सैकड़ों भक्तों ने भाव विभोर होकर सुना। मायरे का जीवंत उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। कथा शुभारंभ के पूर्व किन्नर महामंडलेश्वर संतोषी मां, महांमडलेश्वर राघवेन्द्रदास महाराज के सानिध्य में समाजसेवी विनोद मित्तल, मनीष गुप्ता, विजय शर्मा, बंटी शुक्ला, राजू सीतलानी एवं जगदीश शर्मा ने सपत्नीक व्यासपीठ का पूजन किया। महिला समिति की ओर से श्वेता शर्मा, अर्चना शर्मा, गंगा जैन, प्रिया सांखला, पिंकी शालिनी जैन, सुमित्रा दायमा, डॉ. प्रियंका परमार एवं सोनू सोलंकी ने सभी संत-विद्वानों की अगवानी की।
उधऱ खाटू श्याम महायज्ञ में सुबह विद्वान पंडितों के सानिध्य में विश्व शांति एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए ओम श्री श्याम देवाय नमः बीज मंत्र से भैंसा गूगल एवं 56 भोग की आहुतियां समर्पित की गई। महायज्ञ में समिति की ओर से धीरेन्द्र जायसवाल, मलखानसिंह ठाकुर, मनीष जैन, अशोक सोलंकी, सुनील शुक्ला, कैलाश भाटी, विनोद विश्वकर्मा, महेश वर्मा, श्याम सुंदर सोनी एवं अनिल सोनी सहित सैकड़ों भक्तों ने आहुतियां समर्पित कर आरती में भी भाग लिया। यज्ञ देवता के जयघोष से खाटू श्याम धाम गूंजायमान बना रहा। महायज्ञ में 21 हजार आहुतियां संपन्न होते ही खाटू श्याम के जयघोष से मंदिर गूंज उठा।
मायरे की कथा में समापन प्रसंग पर सुश्री मुस्कान शर्मा ने कहा कि नरसी मेहता को भगवान शिव एवं कृष्ण दोनों की भक्ति और कृपा प्राप्त हो गई थी। भक्ति का रंग तभी जमता है, जब भक्त स्वयं को भूलकर अपने आराध्य में खो जाए। नरसी मेहता अपने पिता की श्राद्ध की तिथि भी भूल गए थे, लेकिन भगवान ने याद रखी और खुद बरसी करने पहुंच गए। कई बार भगवान भी अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं और जब भक्ति डांवाडोल होने लगती है, तब उसे दृढ़ता प्रदान करने का काम भी भगवान ही करते हैं। नानी बाई की कथा में पिता और पुत्री के बीच करूणा और स्नेह का अदभुत समन्वय है। यह कथा आज के संदर्भों में भी समाज को बेटियों के सम्मान के लिए प्र्रेत करती है।