शहर के परंपरागत जल स्त्रोतों को प्रदूषण और अतिक्रमण से बचाए बिना हमारे प्रयास सार्थक नहीं होंगे–डॉ. राजेंद्र सिंह

शहर के परंपरागत जल स्त्रोतों को प्रदूषण और अतिक्रमण से बचाए बिना हमारे प्रयास सार्थक नहीं होंगे–डॉ. राजेंद्र सिंह
संस्था ‘सेवा सुरभि’ द्वारा प्रेस क्लब सभागृह में कार्यशाला का आयोजन- अनेक वक्ताओं ने दिए महत्वपूर्ण सुझाव
इंदौर, । धरती का बुखार बढ़ रहा है तो मौसम के मिजाज भी बदल रहा है। इंदौर के लोग पानीदार हैं और अच्छी बात यह है कि पानी को लेकर चिंता करने लगे हैं। पानी के प्रति यह संवेदनशीलता बनी रहना चाहिए। शहर में जब तक हम अपने परंपरागत जल स्त्रोतों को प्रदूषण और अतिक्रमण से नहीं बचाएंगे, पानी का अतिशोषण रोकने का प्रयास नहीं करेंगे, पुराने तालाबों को पानीदार नहीं बनाएंगे और पानी में किसी भी तरह का प्लास्टिक नहीं मिलनें देंगे –पानी बचाने की दिशा में हमारे प्रयास सार्थक नहीं होंगे। शहर को नए पेड़-पौधों की भी सख्त जरूरत है। ‘सेवा सुरभि’ जैसे शहर के सामाजिक संगठनों को चाहिए कि वे स्थानीय उद्योगों के साथ मिल-बैठकर उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषित जल के पुनर्उपयोग पर बातचीत करें, भू-जल और सतही जल को प्रदूषित होने से बचाएं और शासकीय विभागों से समन्वय कर पानी बचाने की पहल करें।
पानी वाले बाबा के नाम से प्रख्यात, मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरणविद डॉ. राजेन्द्र सिंह ने सामाजिक, सांस्कृतिक और प्रकृति एवं पर्यावरण से जुड़ी संस्था ‘सेवा सुरभि’ के तत्वावधान में रविवार को प्रेस क्लब के राजेन्द्र माथुर सभागृह में आयोजित एक कार्यशाला में उक्त बातें कहीं। इस कार्यशाला में ‘ पारंपरिक जल स्त्रोतों के संरक्षण एवं पुनर्जीवन ’ जैसे सामयिक विषय को लेकर नगर निगम आयुक्त शिवम वर्मा एवं अन्य सरकारी विभागों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में शहर के विभिन्न वर्गों से जुड़े प्रतिनिधियों ने भी खुलकर अपनी बात कही और शहर की जल समस्या पर अपने सुझाव भी दिए। इस अवसर पर डॉ. राजेन्द्रसिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘पानी की पंचायत’ का लोकार्पण भी अतिथियों ने किया। प्रारंभ में डॉ. राजेन्द्रसिंह एवं अन्य अतिथियों ने संस्था के संयोजक ओमप्रकाश नरेड़ा, कुमार सिद्धार्थ, ओ.पी. जोशी, संदीप नारुलकर, पद्मश्री जनक पलटा, प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी एवं निगम आयुक्त शिवम वर्मा ने तुलसी के पौधे को अभिसिंचित कर कार्यक्रम में उपस्थित शहर के प्रबुद्धजनों को भी अपने इस अभियान में भागीदार बनाकर इस कार्यशाला का शुभारंभ किया। प्रारंभ में विषय प्रवर्तन करते हुए कुमार सिद्धार्थ ने कहा कि वर्तमान समय में जल संकट हम सभी के लिए गहन चिंता का विषय है। इसने हमें पुनः अपने इंदौर के पारंपरिक जल स्रोतों में कुएं, बावड़ियाँ, तालाब, नदियों की ओर देखने के लिए प्रेरित किया है — जिनका कभी शहरी जीवन में अहम स्थान रहा है। इन जल स्रोतों का संरक्षण और पुनर्जीवन न केवल सतत जल प्रबंधन का आधार है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक और पर्यावरणीय संतुलन को पुनः स्थापित करने का माध्यम भी है।
निगम आयुक्त शिवम वर्मा ने कहा कि शहर का शहरीकरण बढ़ रहा है वैसे-वैसे पानी की खपत भी बढ़ रही है। नागरिक यदि पानी की बर्बादी को रोकने में सहयोग दें और उपलब्ध जल का पूरी तरह सदुपयोग करें तो कोई ज्यादा संकट नहीं है। हमने बहुत से कुएं, बावड़ी चिन्हित कर उनका जीर्णोद्धार शुरू कर दिया है। हम चाहते हैं कि परंपरागत जल स्त्रोंतों के आसपास पर्यटन स्थल भी बनाएं, ताकि लोगों की आवाजाही बनी रहे और वे ऐसे स्थलों की चिंता करना शुरू कर दें। हमने वाटर चैनल्स को साफ करने का काम भी किया है, जिससे पानी की आवक बढ़ी है। शहर में 55 हाईड्रेंट हैं, जिनसे पानी की आपूर्ति की जाती है। इसके अलावा रेवती रेंज पर पौधारोपण से भी स्थिति सुधरी है। वाटर हर्वेस्टिंग से भी फर्क पड़ा है। इंदौर के लोग पानी को लेकर एक्शन प्लान से जुड़े हुए हैं।
जीएसआईटीएस के डॉ. संदीप नारुलकर ने प्रस्ताावना रखते हुए कहा कि नर्मदा 1975 में आ गई थी और संकट शुरू हुआ 1984 में। लोगों ने ट्यूबवेल लगा-लगाकर जमीन को गंजा कर दिया। ये जमीन खोदने का अभियान लगातार चलता रहा, जिससे भू-जल स्तर गिरता रहा। 1996 में भी जल संकट की स्थिति बनी थी। इंदौर में 750 से 800 मिलीलीटर वर्षा में पूरा शहर डूब जाता है। कम समय में अधिक वर्षा होने से या एक ही दिन में ढेर सारी बारिश हो जाने की प्रवृत्ति से भी वर्षा का पानी जमीन में नहीं उतर पाता। लगातार बोरिंग से भू-जल स्तर 10 गुना नीचे चला गया है। बढ़ते शहरीकरण और नलकूप खनन की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण ही जल संकट के हालात बने हैं।
पर्यावरणविद डॉ. ओ.पी. जोशी ने कहा कि यह खुशी की बात है कि देश के 32 शहरों में रामसर साइड वेटलैंड घोषित किए गए हैं, जिनमें इंदौर भी एक है। इंदौर को वाटर प्लस अवार्ड भी मिल चुका है। कम पानी के मामले में 2030 में 99 शहरों के सर्वे में इंदौर का 19वां स्थान है। यहां पानी का जो दोहन हो रहा है, वह पहले 120 प्रतिशत था, जो अब घटकर 100 प्रतिशत रह गया है। नए सर्वे में रतलाम के बाद इंदौर का दूसरा स्थान है। शहर में 6 स्थानों पर खम्बाती कूए लगाने की भी योजना है, जिनमें पानी धीरे-धीरे एकत्र होगा। पहले हमारे जल स्त्रोंतों में ग्रीष्मकाल में तीन माह में तक पानी भरा रहता था, जो अब एक माह में ही सूख जाता है। सरकार ने 1157 करोड़ रुपए कान्ह और सरस्वती नदी को सुधारने पर खर्च कर दिए, लेकिन उसका लाभ नहीं मिला। इंदौर में 27 तालाबों में से 19 बड़े तालाब काम के रह गए हैं। तालाबों के केचमैंट एरिया पर अतिक्रमण हुए हैं। शहर की 6 कपड़ा मिलों के पास उनके परिसर में तालाब भी थे, उन्हें पुनर्जीवित किया जाए तो बहुत हद तक समस्या हल हो सकती है। वहां 20 टैंक भी हैं, उनका उपयोग भी जल संग्रहण के लिए किया जा सकता है। बनेड़िया तालाब भी भोपाल के बाद दूसरा बड़ा तालाब है, उसका भी सुधार होना चाहिए। अभी वल्लभ नगर में भी बावड़ियों का काम शुरू हुआ है। ऐसे प्रयासों से जल संकट को दूर करने में मदद मिल सकती है।
कैट के सेवा निवृत्तर इंजीनियर निकेतन सेठी ने कहा कि उन्होंने वाटर हार्वेस्टिंग, जल पुनर्भरण, पौधरोपण और रिचार्जिंग की मदद से अच्छे नतीजे प्राप्त किए हैं। अभी इंदौर सबसे महंगा पानी उपयोग कर रहा है। उन्होंने नगर निगम आयुक्त से आग्रह किया कि वे नर्मदा के साफ पानी से उन लोगों को रोकें, जो अपने वाहन, सड़कें और घरों को धोते हैं।
पद्मश्री जनक पलटा ने कहा कि नगर निगम शहर के जल स्त्रोंतो को पर्यटन स्थल नहीं बनाएं, उन्हें अपने प्राकृतिक स्वरूप में ही रहने दें। गांव में प्लास्टिक जलाया जा रहा है। बिसलरी और पानी की बोतलों की बिक्री पर रोक के साथ ही पेड़ों की कटाई पर भी रोक लगना चाहिए। सामाजिक कार्यकर्ता मेघा वर्बे ने शहर के तालाबों को चिन्हित करने, उनका सीमांकन करने और उनका संरक्षण करने का सुझाव दिया। तालाबों की सफाई करने की जरूरत बताते हुए उन्होंने नागरिकों की समितियां बनाने तथा शहर के बगीचों में सघन पौधे लगाने का भी सुझाव दिया। प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने कहा कि अभी जल संकट जैसे हालात नहीं है, लेकिन जिस तरह कैलाश विजयवर्गीय ने अपने महापौर कार्यकाल में जन भागीदारी का प्रयोग कर शहर को नए आयाम दिए, उसी तरह अब नर्मदा के चौथे चरण के बाद नागरिकों को जागरुक करना होगा। उन्होंने डॉ. राजेन्द्रसिंह से आग्रह किया कि वे एक उच्च स्तरीय समिति बनाकर उसके माध्यम से जल संरक्षण और नए जल स्त्रोत स्थापित करने की दिशा में प्रयास करें।
पत्रकार डॉ. जितेन्द्र व्यास ने कहा कि पुराना सहेज नहीं पाते और नया बना नहीं पाते, यह स्थिति बन गई है। किसी एक बावड़ी पर पांच-सात दुकानें बनाई जाने के लालच में पूरी बावड़ी को बंद कर दिया जाता है। हम सब नर्मदा पर ज्यादा निर्भर हो गए हैं और इसी कारण नर्मदा के बाद शहर में पिछले 50 वर्षों में कोई नया तालाब नहीं बना है, बल्कि जो थे, वे भी खत्म हो रहे हैं। डॉ. किशोर पंवार ने कहा कि सदाबहार नामक पेड़ की जड़ों में 15 हजार लीटर पानी जमा होता है। इस तरह के दो-चार लाख पेड़ लगा दिए जाएं तो लाखों लीटर पानी हमारे पास जमा हो सकता है। पेड़ छाते की तरह वर्षा के पानी को जमीन में उतारते हैं, जिससे हमारे बोरिंग चल रहे हैं। अजीतसिंह नारंग ने बताया कि उन्होंने 40 देशों में पानी की जरूरत पर अध्ययन करने के बाद जो रिपोर्ट तैयार की है, उसे वे डॉ. राजेन्द्रसिंह और निगम आयुक्त को सौंप रहे हैं। नगर निगम के पूर्व सभापति अजयसिंह नरुका, म.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वी.के. जैन ने भी अपने सुझाव रखे।
पानी वाले बाबा डॉ.राजेन्द्र सिंह ने कहा कि इंदौर मैं कई बार आया हूं। यहां के लोग पानीदार हैं और अच्छी बात यह है कि पानी के लिए चिंता कर रहे हैं। पानी के प्रति संवेदनशील बने रहना चाहिए। इंदौर वाटर रिचार्जिंग के क्षेत्र में कमजोर है। भू जल का स्तर भी बढ़े और भूमिगत जल का स्तर भी बढ़े इसके लिए प्रयास करना होंगे। एक शोध से पता चलता है कि 40 साल पुराने पीपल के पेड़ की जड़ों में 8 हजार लीटर पानी जमा रहती है। पेड़ हमारे वाटर बैंक हैं। वर्षा के पानी से हरियाली बढ़ाने के प्रयास होना चाहिए। जितने अधिक पेड़ लगाएंगे उतनी अधिक हरियाली होगी। धरती का तापमान बुखार बढ़ रहा है और मौसम का मिजाज भी बदल रहा है। इस स्थित में शहर की सामाजिक संस्थाओं को उद्योगों से मिल-बैठकर उनके पानी के रियूज की दिशा में बात करना चाहिए। भूजल और सतही जल को प्रदूषित होने से बचाने का प्रयास बहुत जरूरी है।
अतिथियों को स्मृति चिन्ह अतुल शेठ, कमल कलवानी ने भेंट किए और स्वागत किया ओमप्रकाश नरेड़ा, अनिल गोयल, पंकज कासलीवाल, गौतम कोठारी और अनिल मंगल ने। संचालन कुमार सिद्धार्थ ने किया। आभार माना डॉ. दिलीप वाघेला ने। कार्यशाला में जयश्री सिका, दीपक जैन टीनू, रामेश्वर गुप्ता, हरे राम वाजपेयी, लोकेन्द्र त्रिवेदी, नेताजी मोहिते, स्वप्निल व्यास, वी.पी. गुप्ता सहित बड़ी संख्या में शहर के प्रबुद्धजन उपस्थित थे।