विश्व जल दिवस पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा हमें पानी का दुरुपयोग रोकना होगा

विश्व जल दिवस पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा हमें पानी का दुरुपयोग रोकना होगा

विश्व जल दिवस की पूर्व संध्या पर जल एवं तालाब सरक्षण समिति द्वारा चलाया गया अभियान

पानी को बचाने का सार्थक परिणाम लाने के लिए सभी को एक साथ आना होगा

इंदौर। जल एवं तालाब सरक्षण समिति की सचिव मेघा बर्वे ने बताया कि पानी को बचाने का सार्थक परिणाम लाने के लिए सभी को एक साथ आना होगा। जब सब मिलकर प्रयास करेंगे तभी अच्छे परिणाम सामने आ सकेंगे। पहले कहा जाता था कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। अब कहा जा रहा है कि एक समय लोगों के लिए पीने का पानी भी मुश्किल होगा। 

 विश्व जल दिवस के अवसर पर देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में आयोजित संगोष्ठी में विद्वान वक्ताओं के द्वारा व्यक्त किए गए। जल वैज्ञानिक तापस सरस्वती ने बताया कि इस साल वर्ल्ड वाटर डे की थीम "ग्लेशियरों को संरक्षित करना" है। उन्होंने जल संकट की गंभीरता को समझाते हुए बताया कि पृथ्वी का 80% भाग जल से ढंका है। इसमें से 97.5% महासागरीय जल है, जो पीने योग्य नहीं। सिर्फ 1% पानी ही पीने लायक है, जिसे बचाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, "आवश्यकता सभी अविष्कारों की जननी है, लेकिन प्रगति सभी समस्याओं की जननी बन जाती है। यह एक अंतहीन चक्र है।" जल चक्र में पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता सबसे जरूरी कारक हैं, जिन पर ध्यान देना होगा। जल संरक्षण के लिए आर्टिफिशियल ग्राउंडवॉटर रीचार्जिंग, रेन वाटर हार्वेस्टिंग, घरेलू पानी का समझदारी से उपयोग और वेस्ट वाटर का पुनःचक्रण सबसे जरूरी उपाय हैं।

  सबसे अच्छा तरीका वेस्ट वाटर को दोबारा उपयोग में लाना है, क्योंकि हमें पीने के लिए बहुत कम पानी चाहिए, जबकि बाकी जरूरतों के लिए बड़ी मात्रा में पानी खर्च होता है। सिंगापुर का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि वहां पीने के पानी का कोई प्राकृतिक स्रोत नहीं है। वे पहले मलेशिया से पानी खरीदते थे, लेकिन यह महंगा पड़ता था। इसके बाद उन्होंने वेस्ट वाटर को इतना ट्रीट किया कि वह पीने योग्य हो गया। आज भारत में भी यह तकनीक आसान है, लेकिन लोग अभी भी ट्रीटेड पानी को अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं। छोटे-छोटे बदलाव से पानी बचाया जा सकता है। एक छोटे से लीकेज से सालभर में 1 लाख लीटर पानी व्यर्थ हो जाता है। बड़ी बाल्टी की जगह छोटी बाल्टी और बड़े मग की जगह छोटा मग इस्तेमाल करने से भी जल संरक्षण में मदद मिलेगी। उन्होंने बताया कि इंदौर जैसे शहरों में बाथटब में 100 लीटर पानी खर्च करना सही नहीं है। 

सिर्फ एक दिन "वर्ल्ड वाटर डे" मनाने से कुछ नहीं बदलेगा, इसके लिए निरंतर जागरूकता और सही आदतों की जरूरत है। कार्यक्रम में मौजूद सभी लोगों को जल संरक्षण की गंभीरता और इसके समाधान के बारे में जागरूक किया गया। उन्होंने कहा, अगर हमें भविष्य में जल संकट से बचना है, तो आज से ही पानी बचाने और उसे दोबारा उपयोग में लाने की आदत डालनी होगी।

जल विशेषज्ञ डॉ. सुनील व्यास ने‌ कहि कि पानी का व्यर्थ उपयोग न करें और इसके संरक्षण में योगदान दें। हमें पानी की एक-एक बूंद का सम्मान करना चाहिए। अगर हम एक ग्लास पानी लेते हैं, तो हमें उसे पूरा पीना चाहिए। वृक्ष लगाना आसान है, लेकिन हमें उसकी देखभाल करनी भी जरूरी है। हमें एक ही पेड़ लगाना चाहिए और उसकी देखभाल करनी चाहिए जब तक वह खुद को सींचने के लायक न हो जाए। डॉ. व्यास ने कागज के उपयोग पर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा,कागज बनाने में भी बहुत पानी लगता है। इसलिए, हमें कागज का उपयोग करते समय भी ध्यान रखना है कि इसके कारण कितना पानी व्यर्थ हुआ है।

पर्यावरण विद डॉ. ओ. पी. जोशी ने कहा कि कल विश्व जल दिवस है पर आज विश्व वन दिवस है ।जल और वन का नाता तो एक दूसरे से है ही। उन्होंने ‘आभासी जल’ की गंभीरता को रेखांकित किया। उन्होंने प्रोफेसर टोनी एलन की बात की जो कि ब्रिटिश भूगोलवेत्ता है उन्होंने आभासी जल की अवधारणा प्रस्तुत की थी। उन्होंने 1993 से 2001 तक इस क्षेत्र में गहन शोध किया जिसके लिए उन्हें 2008 में स्टॉकहोम वॉटर प्राइज से सम्मानित किया गया था। उन्होंने इस अवधारणा को दुनिया के सामने रखा कि किसी भी खाद्य या औद्योगिक उत्पाद के निर्माण में प्रत्यक्ष रूप से दिखने वाले पानी के अलावा भी बड़ी मात्रा में जल की खपत होती है, जिसे 'आभासी जल' कहा गया है। अलग-अलग देशों में कृषि में जल उपयोग की मात्रा भिन्न होती है—भारत में 300 लीटर पानी जिस काम में लगता है, वही मात्रा ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका में अलग हो सकती है। इस पानी के निर्यात में पहले अमेरिका, दूसरे चीन और तीसरे पर भारत है। इसलिए, न केवल दिखने वाले पानी की, बल्कि छिपे हुए जल संसाधनों की भी बचत जरूरी है।

डॉ जोशी ने उदाहरण देकर कुछ आंकड़ों का जिक्र किया जिसमें उन्होंने बताया कि भारत में 1 किलो चावल के उत्पादन में 2500 लीटर, मक्के में 300 लीटर और शक्कर में 2500 लीटर पानी की खपत होती है। जल की कमी वाले क्षेत्रों में अत्यधिक पानी खपत करने वाली फसलें उगाने से सूखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। भारत जैसे देश में, जहां कई क्षेत्र पहले से ही जल संकट का सामना कर रहे हैं, गेहूं, चावल और शक्कर की खेती में पानी ज्यादा लगता है। ऐसे में उसका उपयोग कम करके, मोटा अनाज का उपयोग खाने में लाना चाहिए क्योंकि उसकी खेती में पानी कम लगता है। वाटर फुटप्रिंट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति लगभग 1000 लीटर पानी की खपत होती है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 2000 से 2500 लीटर तक पहुंच जाती है। मांसाहारी भोजन में शाकाहारी भोजन को पकाने तुलना में पानी ज्यादा लगता है। एक कॉटन शर्ट को कपास बोन से उसके शर्ट बनने तक में लगभग 2500 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि जींस के निर्माण में 4000 लीटर पानी की जरूरत होती है। खाने की थाली में जितना आप झूठा छोड़ते है तो खाने के साथ पानी भी व्यर्थ होता है जो उसके पकने में उपयोग है। जो पानी विजिबल है उसके संरक्षण के साथ ही जो पानी इनविजिबल उसकी भी रक्षा करे।

समुदाय के लिए काम करने वाली हेमल कामतने कहा कि जनता की भागीदारी से ही हम जल संरक्षण कर सकते हैं । उनका कहना था कि जल संरक्षण में आज का युवा एक बड़ी भागीदारी दे सकती है । युवा रील के जरिए जल को बचाने के लिए हम क्या कर सकते हैं इस बारे में बता सकते हैं। बारिश के पानी से भी हम जल छाजन किया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जब तक समाज के सभी वर्ग मिलकर एक साथ प्रयास नहीं करेंगे तब तक पानी बचाना और पानी का संरक्षण करना संभव नहीं हो सकेगा। इस दिशा में छोटे-छोटे प्रयास भी बड़ा परिणाम ला सकते हैं। 

 जरा याद करो वह दिन-इस मौके पर अभ्यास मंडल मैं विभिन्न पदों पर रहे नेताजी मोहिते ने 1968 का बहुत दिन याद दिलाया जब इंदौर में का वह दिन याद दिलाया जब इंदौर में पानी का गंभीर संकट पैदा हो गया था। फिर इंदौर के नागरिकों ने अभ्यास मंडल के बैनर तले इकट्ठा होकर राज्य सरकार से इंदौर में नर्मदा का पानी देने के लिए आंदोलन किया। इस आंदोलन की विस्तार से जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि किस तरह से नर्मदा का महंगा पानी इंदौर पहुंचा है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम इस पानी की कीमत को समझें और उसका दुरुपयोग करने के बजाय उसका संचय करने पर ध्यान दें। इसके साथ ही उन्होंने कान्ह और सरस्वती को नाले से फिर से नदी बनाने पर भी जोर दिया। इस मौके पर अतिथियों का परिचय डॉ जितेंद्र जाखेटिया ने दिया। कार्यक्रम के संचालक और विभाग के प्राध्यापक डॉ लखन रघुवंशी ने कहा कि पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर द्वारा नित्य प्रतिदिन की आदतों में ऐसी बातों का समावेश किया है जिससे जल संग्रहण और संचयन किया जा सके।

अतिथियों का स्वागत डॉ मीनू कुमार, डॉ मनीष काले, डॉ विनोद सिंह, डॉ नीलमेघ चतुर्वेदी, डॉ कामना लाड ने किया।