मोदी-मोहन सरकार ने पकड़ी संघ की पटरी पर तेज रफ्तार अब मामा नही, भैया का नया दौर

मोदी-मोहन सरकार ने पकड़ी संघ की पटरी पर तेज रफ्तार अब मामा नही, भैया का नया दौर
मोदी-मोहन सरकार ने पकड़ी संघ की पटरी पर तेज रफ्तार
अब मामा नही, भैया का नया दौर
कागजों पर तय कद्दावरो के कद
नही खलने दी स्वघोषित मामा की कमी
सचिन देव, नई दिल्ली
मध्यप्रदेश में नवगठित मोदी- मोहन डबल इंजन सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं संघ (संघ) की सख्त और मजबूत सधी हुई संगठनात्मक पटरी पर रफ्तार पकड़ ली है। विशेष बात यह है कि संघ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी कद्दावरो को चौकाते हुए डॉ मोहन यादव की ताजपोशी की और वे भी अब तक पूर्णतः कसौटी पर खरे उतरने में सफल रहे। अपने अब तक के कार्यकाल में यादव ने निर्विवाद रूप से पूर्ववर्ती (भाजपा की ही) सरकार में प्रशासन के हावी होने के अरसे से चले आ रहे बदनुमा दाग को बेहद करीने से साफ तो किया ही, पूर्व मुख्यमंत्री मामा की कोई कमी भी महसूस नही होने दी। या यूं कहे की विकास के साथ- साथ कट्टर हिंदुत्व और जात-पात की राजनीति के बीच प्रमुखता से उभरा नारी शक्ति का करीब पचास फीसदी वोट बैंक भी भगवा ब्रिगेड के फोकस पर है। जिसके चलते राज्य के नए मुखिया डॉ. मोहन यादव लाडली बहना योजना के बेहतर क्रियान्वयन के साथ लाड़ले भैया की ईमेज में ढलते नजर आ रहे है। हालांकि साढ़े सोलह वर्ष की मुख्यमंत्रित्व काल की ऐतिहासिक पारी के समापन के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल स्थित अपने सरकारी आवास पर मामा का घर बोर्ड लटका कर दबाव की राजनीति के साथ सहानुभूति बटोरने की भरपूर कोशिश की। मगर अफसोस मामा के मुकाबले बहनों का भाई से रिश्ता ज्यादा आत्मिक होता है।
मामा शायद भूल गए कि वर्ष 2005 में जिन परिस्थितियो में उनकी ताजपोशी की गई थी, तब दिल्ली में विपक्ष में बैठा शीर्ष नेतृत्व खुद देश व्यापी पार्टी के छत्रपों की खुली चुनौतियो से जूझ रहा था। पर पीछे दृढ़ता के साथ खड़ा था, सुदृढ़ अनुशासित तटस्थ संगठन संघ, जिसके बूते मामा साढ़े सोलह वर्ष लंबी मुख्यमंत्रित्व काल की पारी खेल सके। आज भी संघ अपनी तटस्थता के साथ नए मुखिया डॉ यादव को स्थापित करने में जुटा तो, केंद्र में हैट्रिक बना चुके भाजपा आलाकमान के समक्ष मन-मुटाव की गुंजाइश शेष नही। खैर बात हो रही है, नए मुखिया मोहन भैया की तो, उनका राजनीतिक संगोपन छात्र राजनीति से ही संघ की निगरानी में ही हुआ है। वे संघ की मालवा प्रान्त की उपराजधानी उज्जैन में संघठन के तमाम कार्यक्रमो में वर्षाे से सक्रिय रहे। चाहे बात वर्ष 2016 के सिंहस्थ महाकुंभ से अंतर्राष्टीय गुरुकुल सम्मेलन की हो या शैव महोत्सव, लेकिन डॉ. यादव के सीएम बनने तक के सफर में वर्ष 2020 में तत्कालीन कमलनाथ सरकार का ध्वस्त होना और नई भाजपा सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री के रूप में संघ सौक्त आचरण उनके लिए मील का पत्थर साबित हुआ। प्रदेश की मोदी-मोहन डबल इंजन सरकार के गठन के नौ महीने बाद जिलों में प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति के बहुआयामी मायने है। एक तो संघ और केंद्र की मोदी सरकार की सीधी निगरानी में मोहन सरकार का व्यवस्थित संचालन, जिसके चलते कद्दावर मंत्रियों का सहजता से निर्णयों को स्वीकार करना। दूसरा प्रदेश भर की प्रशासनीक व्यवस्था का सीधे सीएम सेक्रेट्रिएट से सिंगल विंडो सिस्टम के मुताबिक कार्य। अब सीधे सीएम सेक्रेट्रिएट से सध चुके प्रशासनिक अधिकारियों से अपने मुताबिक कार्य करवा लेना प्रभारी मंत्रियों की दक्षता पर निर्भर करेगा। राजनीतिक जानकारों की माने तो नए मुख्यमंत्री और नए सरकार के गठन के नौ महीने बाद मंत्रियों को जिलों के प्रभार से कागजो पर कद्दावरों के कद तय कर मुख्यमंत्री को मुख्यमंत्री बना दिया। हालांकि इसमें खुद डॉ. यादव के राजनीतिक परिपक्वता और विशेषकर आम चुनावों में भले ही राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की तालिका बहुमत के जादुई आँकड़े से कुछ दूर रह गई, लेकिन मध्यप्रदेश की 29 की 29 सीटों पर कमल खिलाकर उन्होंने खुद की सर्व स्वीकार्यता भी सिद्ध की। दरअसल यह कहना भी मुनासिब नहीं होगा कि पार्टी ने प्रदेश में जीत के लिए दिल्ली में केंद्रीय मंत्री रहे या पार्टी संगठन में कार्यरत नेताओ को विधानसभा चुनाव लड़वा कर कद कम किया। दिल्ली से विधानसभा चुनाव लड़ने जाते वक्त सभी की यही राय थी की शिवराज सिंह चौहान फिर से मुख्यमंत्री ना बने। अब आलाकमान तो आलाकमान ठहरा डेढ़ सौ करोड़ जनता का भाग्य विधाता, उसने सभी कद्दावरों को वन-टू-वन बुलाकर विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए यह कहते हुए तैयार किया श्आपको मध्यप्रदेश बुला रहा हैश्। चुनाव से पहले ही तय हो चुका था, इस बार मामा मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। अब खुद की जातिगत या तीन-चार दशक लंबे राजनीतिक सफर के आधार पर सभी कद्दावर अपने लिए कुर्सी खाली देख सहजता से प्रदेश के लिए कूच कर गए। आलाकमान ने अपना वादा निभाया मामा मुख्यमंत्री नहीं बने, और पर्ची में निकले डॉ मोहन यादव। अब एक साल से आलाकमान की मर्जी से सरकार चला रहे डॉ यादव के हर फैसले को शीर्ष नेतृत्व की मर्जी समझ कद्दावर पूरी तन्मयता से अपने-अपने सीमांकित दायरों में रहकर जन सेवा में जुटे है, तो मामा के बाद पिछले नौ महीने से भैया युग का धमाकेदार आगाज हो चुका है। डॉ यादव का परिस्थितीनूरूप खुद को ढालने का व्यक्तित्व उन्हें मोदी और संघ प्रिय बनाए हुए है, तो मजबूत प्रशासनीक पकड़ और जनकल्याणकारी योजनाओं विशेषकर लाडली बहनाओ के मोहन भाई की चौतरफा बल्ले-बल्ले है।