जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कारों की परंपरा ही भारतीय समाज की सबसे बड़ी ताकत-अनुराग

गोराकुंड के मदन मोहनलाल मंदिर पर पुष्टीमार्गीय सत्संग
-भागवत रसपान महोत्सव की आज होगी पूर्णाहुति
इंदौर। भारतीय समाज संस्कारों से बंधा हुआ है। जन्म से लेकर मुंडन, नामकरण, अन्नप्राशन, शिक्षारंभ, सगाई, ब्याह-शादी गृह प्रवेश से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कारों की परंपरा से बंधे होने के कारण ही भारतीय समाज मर्यादित और शालीन बना हुआ है। यही हमारे समाज की सबसे बड़ी ताकत है। पश्चिम में विवाह संस्कार नहीं, सौदा होता है। वहां 7 दिन और 7 माह में ही विवाह टूट जाता है, जबकि हमारे यहां सात जन्मों का रिश्ता होता है। रुक्मणी विवाह भगवान का नारी के प्रति मंगल भाव का प्रतीक है। भगवान की सभी लीलाएं हमारे लिए कल्याणकारी होती है।
गोराकुंड, एम.जी. रोड स्थित मदन मोहनलाल मंदिर परिसर पर चल रहे पुष्टीमार्गीय सत्संग एवं भागवत रसपान महोत्सव में भागवताचार्य अनुराग मुखिया ने रुक्मणी विवाह प्रसंग के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए।कथा में रुक्मणी विवाह धूमधाम से मनाया गया। बधाई गीत भी गूंजे और वर-वधु ने एक दूसरे को वरमाला पहनाई समूचा मंदिर परिसर भगवान के जयघोष से गुंजायमान हो उठा। कथा में भक्तों का सैलाब दिनोंदिन बढ़ रहा है। मनोहारी भजनों पर भक्तों का थिरकना पहले दिन से ही जारी है। कथा शुभारंभ के पूर्व सांसद शंकर लालवानी, विधायक गोलू शुक्ला के साथ राजू सागर, गिरिराज गुप्ता, महेश मित्तल, ईश्वर नीमा एवं महिला मंडल की ओर से सुरभि नीमा, पुष्प कोठारी, संगीता कटलाना एवं चंदा शर्मा आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।
भागवताचार्य अनुराग ने कहा कि जिस परिवार, समाज और राष्ट्र के संस्कारों का विघटन होता है, वह कभी आगे नहीं बढ़ा सकता। हम सब सौभाग्यशाली हैं कि हमें भारत भूमि में जन्म मिला, वह भी मनुष्य के रूप में। इस दुर्लभ मनुष्य जीवन की सार्थकता केवल खाने-पीने, सोने और निंदा-चुगली करने में नहीं, बल्कि परमार्थ और सदभाव के चिंतन में है। वर्तमान संदर्भों में हमें सनातन धर्म और संस्कृति के संवर्धन के लिए एकजुट होने की जरूरत है। हमारे धर्म ग्रंथो में भी मातृभूमि की रक्षा को सबसे शीर्ष धर्म बताया गया है । सनातन धर्म समाज को जोड़ता है। एक-दूसरे के प्रति स्नेह, श्रद्धा और विश्वास का जोड़ ही राष्ट्र को मजबूत बनाएगा।