परमाणु अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को नज़रअंदाज़ करना अब विकसित देशों के लिए सम्भव नहीं : अनिल काकोड़कर 

परमाणु अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को नज़रअंदाज़ करना अब विकसित देशों के लिए सम्भव नहीं : अनिल काकोड़कर 

स्टेट प्रेस क्लब, मप्र में संवाद कार्यक्रम में पहुँचे पद्मविभूषण से सम्मानित देश के शीर्षस्थ वैज्ञानिक एवं भारत परमाणु ऊर्जा 

परमाणु अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को नज़रअंदाज़ करना अब विकसित देशों के लिए सम्भव नहीं : अनिल काकोड़कर 

इंदौर। अटॉमिक रिसर्च के क्षेत्र में भारत ने विगत दशकों में अपना स्थान बनाया है। यही कारण है कि विकसित देश अब हमसे परमाणु अनुसंधान की बात करने लगे हैं, वरना ये देश हमारे सामने एटम का नाम भी नहीं लेते थे। 

ये बात पद्मविभूषण से सम्मानित देश के शीर्षस्थ वैज्ञानिक एवं भारत परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष  अनिल काकोडकर ने स्टेट प्रेस क्लब, मप्र द्वारा आयोजित 'संवाद' कार्यक्रम में कही। उन्होंने स्पष्ट किया कि एटॉमिक रिसर्च के क्षेत्र में भारत ने इतनी प्रगति कर ली है कि इस क्षेत्र में भारत को नज़रअंदाज़ करना अब विकसित देशों के लिए चाहकर भी सम्भव नहीं है। ज्ञातव्य है कि भारत की संप्रभुता का दावा पुष्ट करने वाले परमाणु परीक्षणों में प्रमुख भूमिका निभाने के अलावा, श्री काकोडकर परमाणु ऊर्जा के लिए ईंधन के रूप में थोरियम पर भारत की आत्मनिर्भरता के समर्थक हैं। श्री काकोडकर देश की वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ देश की मूलभूत समस्याओं और चुनौतियों पर भी न सिर्फ़ गहरी विश्लेषणात्मक नज़र रखते हैं और उन्हें बिना किसी लाग-लपेट के स्वीकार करते हैं बल्कि उनके समाधानों को भी खोजते हैं। इस तरह उम्र के आठवें दशक में भी वे पूरी तरह राष्ट्र के प्रति समर्पित भाव से तटस्थ आकलन करते और अपने स्तर पर लगातार प्रयास करते नज़र आते हैं। उनके विचारों की गहराई के साथ आकलन की ईमानदारी और देश को वैज्ञानिक रूप से आगे ले जाने की उनकी अदम्य इच्छा बातों में स्पष्ट रूप से नज़र आती है जो उनके प्रति श्रद्धा भाव से भर देती है। वे स्पष्ट रूप से मानते है कि तकनीकी रूप से नवोन्मेष और आगे बढ़ना किसी राष्ट्र के सम्मान और प्रगति के लिए आवश्यक है। भारत के विद्यार्थियों में विज्ञान की पढ़ाई के प्रति रुचि घटने के सवाल पर वे कहते हैं कि भारत ने विज्ञान और तकनीक के इंडिकेटर देखें तो वहाँ प्रगति नज़र आती है। ज़्यादा पेटेंट्स के आवेदन हो रहे हैं, रिसर्च पेपर्स ज़्यादा प्रकाशित हो रहे हैं। लेकिन वैज्ञानिक प्रगति तभी महत्वपूर्ण मानी जाएगी जब आम देशवासी के जीवन स्तर सुधार में परिलक्षित हो और तकनीकी प्रगति के साथ मानवीय मूल्यों का ज़्यादा ध्यान रखा जाए। आज भारत में आईटी सेक्टर या कम्प्यूटर इंजिनीयरिंग में विद्यार्थी भेड़चाल की तरह जा रहे हैं लेकिन इसमें उनका दोष नहीं है क्योंकि हम विज्ञान और तकनीक से जुड़े अन्य क्षेत्रों में पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं। आज स्टार्ट अप कल्चर में वृद्धि है। उसके लिए आवश्यक इकोसिस्टम में भी सुधार हो रहा है लेकिन वह पर्याप्त नहीं है। आज के युवा रिस्क टेकिंग से बहुत घबराते हैं क्योंकि हमारे समाज में नवोन्मेष में विफल रहने वाले को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता। यह सामाजिक अवधारणा भी बदले जाने की ज़रूरत है।

प्रदेश के लिए गर्व की बात है कि श्री अनिल काकोड़कर का जन्म 1943 में तत्कालीन बड़वानी रियासत में गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी माता-पिता के घर में हुआ और उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी बड़वानी और खरगोन में हुई। बचपन की पृष्ठभूमि के कारण ग्रामीण भारत से सहज लगाव के कारण वे इन दिनों वे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच अंतर को कम करने वाली अवधारणा Cillage या सिलेज को आगे बढ़ाने में लगे हैं जो कि सिटी के सि और विलेज के अंतिम शब्दों को जोड़कर बना है। उन्होंने कहा कि कहा कि देश में गांवों से शहरों की ओर पलायन की तेज गति के बावजूद, जब असमानता को कम करने के साथ आर्थिक विकास की बात आती है, तो अभी भी देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निबाह सकते हैं। आज भी भारत का बड़ा हिस्सा गाँवों में बसता है। 'वर्क फ्रोम होम' की तरह 'वर्क फ्रोम विलेज' के माध्यम से गाँवों से पलायन और आर्थिक विषमता का बढ़ना रोका जा सकता है। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्र में अवसर शहरी क्षेत्र की तुलना में अधिक होने चाहिए और विज्ञान के कारण ऐसा करना आसान है। आधुनिक ज्ञान-आधारित डिजिटल युग में, ग्रामीण क्षेत्र अर्थव्यवस्था के तीनों अंगों कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र में शहरी क्षेत्रों की तुलना में बेहतर तरीके से योगदान दे सकते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि शिक्षा, कौशल, स्थानीय शोध, प्रौद्योगिकी जागरूकता, निवेश और उद्यमिता के माध्यम से ग्रामीण युवाओं की क्षमता का निर्माण किया जाए। श्री काकोड़कर की अवधारणा के आधार पर मुख्य रूप से महाराष्ट्र के कुछ विश्वविद्यालय भी जुड़े हैं एवं 350 से अधिक गाँवों में स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप तकनीकी उद्यमिता से रोज़गार सृजन की दिशा में प्रयास जारी हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि गढ़चिरौली में देश का सबसे सघन वन क्षेत्र है। वहाँ बहुतायत में उपलब्ध बाँसों से पुल निर्माण की तकनीक के विकास और उसे पाठ्यक्रम में शामिल करने की दिशा में शोध जारी है। श्री काकोडकर के अनुसार सिलेज अवधारणा को अपनाने से भारत तेजी से बढ़ती स्थिर अर्थव्यवस्था के साथ एक बेहतर सामंजस्यपूर्ण मानवीय समाज बनने की दिशा में आगे बढ़ेगा।

कार्यक्रम के प्रथम चरण में स्टेट प्रेस क्लब, मप्र के अध्यक्ष  प्रवीण कुमार खारीवाल,  संजय मेहता, कृष्णकांत रोकड़े एवं श्रीमती मीना राणा शाह ने  अनिल काकोड़कर का सम्मान कर उन्हें क्लब के प्रकाशन एवं स्मृति चिन्ह भेंट किए। कार्यक्रम का संचालन एवं प्रश्नों की मुख्य कमान क्लब के महासचिव  आलोक बाजपेयी के पास थी।  कुमार लाहोटी ने उन्हें स्वनिर्मित कैरीकेचर भेंट किया। अंत में आभार प्रदर्शन वरिष्ठ पत्रकार  राजेंद्र कोपरगांवकर ने किया।