जब तक हमारे कर्मों में सेवा का भाव नहीं आएगा,तब तक शांति नहीं मिल सकती – स्वामी परमानंद

इंदौर ।जीव का स्वभाव शांति और मौज में रहने का है, लेकिन जरूरत से अधिक संग्रह की प्रवृत्ति के चलते हम दूसरों को दुख पहुंचाकर ज्यादा से ज्यादा धन संपत्ति के संग्रह में जुटे हुए हैं और यही हमारी अशांति की प्रमुख जड़ है। देह सब कुछ नहीं है। हम सबके अंदर ‘मैं’ मौजूद है। यह ‘मैं’ और ‘मेरा’ ही अहंकार का प्रमुख कारण है। हम भूल रहे हैं कि दुनिया में किसी को शांति तब तक नहीं मिल सकेगी, जब तक हमारे कर्मों में सेवा का भाव नहीं आएगा।
राम जन्मभूमि न्यास अयोध्या के न्यासी एवं युगपुरुष स्वामी परमानंद गिरि महाराज ने सोमवार शाम अखंड परम धाम सेवा समिति के तत्वावधान में खंडवा रोड स्थित अखंड परमधाम आश्रम के परमानंद सभागृह पर सात दिवसीय 29वें ध्यान एवं योग शिविर का शुभारंभ करते हुए उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में साध्वी चैतन्य सिंधु, हरिद्वार से आए महामंडलेश्वर स्वामी ज्योतिर्मयानंद, साध्वी दिव्य चेतना गिरि के सानिध्य में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच आश्रम परिवार की ओर से अध्यक्ष किशनलाल पाहवा, श्यामलाल मक्कड़, सुरेश शाहरा, हरि अग्रवाल, रामबाबू अग्रवाल, रामदास गोयल, राजेश ढींगरा की मौजूदगी में दीप प्रज्ज्वलन के साथ शिविर का शुभारंभ हुआ। शिविर को महामंडलेश्वर स्वामी ज्योतिर्मयानंद, साध्वी दिव्य चेतना गिरि ने भी संबोधित किया। संचलन किया राजेश रामबाबू अग्रवाल ने एवं आभार माना समन्वयक विजय शादीजा ने। इस अवसर पर विष्णु कटारिया, सीए विजय गोयनका, रघुनाथ गनेरीवाल, हेमंत जुनेजा आदि ने भी युगपुरुष का स्वागत किया । गुरुदेव के कार्यक्रम स्थल पहुंचने पर विभिन्न संस्थाओं की ओर से उनका गरिमापूर्ण स्वागत किया गया।
आश्रम प्रबंध समिति के अध्यक्ष किशनलाल पाहवा एवं समन्वयक विजय शादीजा ने बताया कि खंडवा रोड स्थित अखंड परमधाम आश्रम पर 21 से 27 जुलाई तक प्रतिदिन सुबह 7 से 9 बजे तक और संध्या 5 से 7 बजे तक आयोजित होगा। शिविर में भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में देश के विभिन्न शहरों से साधक आए हुए हैं, जिनके लिए भोजन एवं आवास की व्यवस्था खंडवा रोड स्थित आश्रम पर की गई है। शिविर एवं अन्य सभी कार्यक्रम निःशुल्क हैं, लेकिन प्रवेश के लिए ‘पहले आएं पहले पाए’ आधार पर ही व्यवस्था रहेगी।
अपने आशीर्वचन में युग पुरुष स्वामी परमानंदजी ने कहा कि मनुष्य का जीवन कर्म प्रधान है। कर्म किए बिना किसी भी मनुष्य का अस्तित्व और प्रभाव नहीं हो सकता, लेकिन कर्म में सेवा का भाव आ जाए या कर्म को हम सेवा बना लें तो भक्ति स्वतः हो जाएगी। परमात्मा ने हमें मनुष्य शरीर उत्तम कार्यों के लिए दिया है। संसार के व्यवहार स्वप्न से सार्थक नहीं होते। प्रेम और वात्सल्य का भाव हम सबके मन में भी जागृत होना चाहिए, तभी हमारे द्वारा किए गए सेवा प्रकल्प फलीभूत होंगे।